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________________ ( २८९) (२९६-३००) देवकुलिका नं० ३०, ३१, ३२, ३३, ३४ । सं० १९८३ वैशाखक. १३ गुरुवार के दिन अंचल. गच्छ के श्रीमेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर जगडामणि श्रीजयकीर्तिमरि के उपदेश से पत्तनवास्तव्य ओसवालज्ञातीय मीठडिया गोत्र के शाह संग्राम पुत्र शाह सलखमण पुत्र शा० तेजा भार्या तेजलदेवी पुत्र शा० डीडा, शा० खीमा, शा० भूरा, शा० काला० शा० गांगा, शा डीडा पुत्र शा० नागराज, काला पुत्र शा० पासा, शा० जीवराज, शा० जिनदास, शा तेजा का द्वितीय भ्राता शा० नरसिंह भार्या कौतिकर कौतुक )देवी पुत्र शा० पासदत्त और देवदत्तने जीरापल्लीतीर्थ चैत्य में तीन देवकुलिकायें बनवाई। श्रीदेवगुरु की कृपा से उत्तरोत्तर मंगल वृद्धि होवे । - ३१ से ३४वीं नम्बर की देवकुलिकाओं पर भी लेख इसी प्रकार के सांगोपांग मिलते हुए कुछ परिवर्तन के साथ अलग अलग उत्कीर्णित हैं। उन में अन्तर इतना ही है कि ३२वीं देवकुलिका शा० डीडा के पुत्र नागराज की पत्नी नारंगीने, ३३वी देवकुलिका शा० नरसिंह की पत्नी रूड़ी थाविकाने और ३४वी देवकुलिका शा० खीमा की पत्नी खीमादेवीने अपने जपने श्रेयार्थ बनवाई। उक्त लेख "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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