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________________ ( २८० ) पन्द्रह, उन्नीश और वैतीश बनवाई केवल उनका उक्त लेखों में वर्णित वंशो का परिचय ही यथाक्रम दिया जायगा । प्रतिष्ठाकर्ता इन सब के एक ही आचार्य हैं, अंतः प्रतिष्ठाकर्त्ता का नामोल्लेख भी पुनः पुनः नहीं किया जायगा । देवकुलिका नं० ८ ( २७९ ) ××××××× कलवग्रनिवासी ओसवालज्ञातीय शा० घणसिंह की सन्तति में शा० जयता भा० तिलकूबाई के पुत्र समरसिंह, सं० मोखसिंहने जीरावलाचैत्य में देवकुलिका बनवाई । श्रीपार्श्वनाथ की कृपा से मंगल होवे । I ( २८० ) देवकुलिका नं० ९ ××××××× कलवग्रनगर निवासी ओसवाल - ज्ञातीय शा घणसी सन्तानीय शा० जयता बाई तिलकू पुत्र सं० समरसिंह सं० मोख सिंहने श्रीजीरावलातीर्थचैत्य में देवकुलिका करवाई | श्रीपार्श्वनाथ की कृपा से मंगल होवे । ( २८१ ) देवकुलिका नं० १० कलवग्रनगरवासी ओसवालज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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