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________________ (२७७) . निर्माण दिवस देवकु० । लेखाक। आचार्य सं०१४८३. वै० १० १३ गुरुवार, २८. . .२१ जयकीसिसूरि " " , | २९ |२३सं० १४८३प्र. वै कृ०१३ गुरुवार ३०,३४ २३,२७ , प्र० कै कृ० ७ रविवार ४३,४४ | ३२,३३ जयचन्द्रसूरि , भाद्र० कृ० २ गुरुवार ५१, ४० भुवनसुन्दसरि ,, भाद्र कृ० ७ शुक्रवार ५२(अ) ४१ । , देवकुलिका नं. २८, २९ के शिलालेख संवत् १४८३ वैशाखकृष्णा त्रयोदशी गुरुवार के हैं और देवकुलिका नं. ३०, ३४ के शिलालेखों में वैशाख के पीछे 'प्रथम' शब्द जुड़ा है, परन्तु तिथि, वार और आचार्य का नाम देखते हुए ये सर्व लेख एक ही दिन और एक ही मास के हैं। हो सकता है दोनों प्रथम लेख वैशाख के हो अथवा द्वितीय के। कभी कभी संभवतः तिथियों की ऐसी भी घटती बढ़ती हो सकती है कि दो महिनों की कुछ तिथियाँ और वार एक ही आ पड़ते हैं । परन्तु अन्तर तो यहाँ आ पड़ता है कि प्र० वैशाख कृष्णा प्रयोदशी को दिन गुरुवार था जो प्र. वै०० सप्तमी को रविवार कैसे पड़ सकता था। इसी प्रकार भाद्रपदकृष्णा द्वितीया को और सप्तमी को क्रमशः गुरुवार और शुक्रवार कैसे पड़ सकते हैं ? जब कि लेखाइ ६, ७, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १६, २० के "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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