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________________ ( २५५ ) राजने अपनी पितामही लीलादेवी के श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखीय श्रीकमलप्रभरि के उपदेश से हुई ( लीलादेवी नरवद की द्वि० भार्या होगी ) ( २०८ ) सं० १४८३ वैशाखशु० ५ गुरुवार के दिन उपकेशवंशीय सं० जसराजने मा० चांपलदेवी, पुत्र वीसल, कन्या वडलीबाई के सहित स्वश्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा षंडेरकगच्छीय श्रीशान्तिसूरिने की । ( २०९ ) सं० १५०५ माघशु० १० रविवार दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कर्मसिंह भा० हांसुदेवी पुत्र श्रे० नरपति सुभावकने स्वभार्या नयनादेवी, प्रमुख परिजनों के सहित माता पिता के श्रेयार्थ अंचलगच्छाधिराज श्री श्री जय केशर सूरि के उपदेश से श्री सुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, श्रीसंघने उसकी प्रतिष्ठा की । ( २१० ) सं० १५०३ माघशु० १३ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मालदेव भा० कामलदेवी पुत्र व्य० केल्हा भा० हर्षदेवी पुत्र व्य० मंडन मा० देदीबाईने पुत्र व्य० वेलराज, "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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