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________________ ( २०१) निवासी श्रीश्रोमालज्ञातीय शाहु रामा श्रे. कुंभा, भा० काश्मीरश्री पुत्र लापाकने मा० फलीपाई, पुत्र धना, मा० शामलीबाई, पांची बाई, पुत्र मेहराज आदि कुटुम्ब सहित अपने कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ चतुर्विंशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रमाणगच्छीय श्रीवीरसूरिने की। (२६) सं० १५२८ चैत्रक० १० गुरुवार के दिन श्रीश्रीवंशीय मंत्री सांगा मा० टीबूबाई पुत्र मं० सुश्रावक रत्नाने मा० धारिणीदेवी पुत्र वीरा, हीरा, नीना, बावा सहित पितृव्य मंत्री सहसा के श्रेयार्थ अंचलगच्छीय गुरु श्रीजयकेशरमरि के उपदेश से श्रीसुविधिनाथ प्रभु का विम्ब करवाया और प्रतिष्ठा श्रीसंघने करवाई। (२७) सं० १६१७ ज्येष्ठ शु० ५ काकरग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नवा मा० धनीबाई पुत्र श्रे० धरणा भा० प्रोमी पुत्र जेसा रत्नाने श्रीविमलनाथप्रभु का विम्ब नागेन्द्रगच्छीय भट्टा० श्रीधरसंघसरि के पट्टाधीश महा० श्रीज्ञानसागरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (२८) सं० १५१३ माघक० ७ बुधवार के दिन प्राग्वाटझातीय लधुसन्तानीय परीक्षक बाला (बालचन्द्र) भा० डाही "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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