________________
( १९२)
पड़ा और अनेक कुल थराद छोड़ कर अन्यत्र चले गये। अहमदाबाद, पालनपुर, राधनपुर, डोसा, धानेरा, धांगधरा, चडोतरा, वीसनगर, वीरमगाम, और काठीयावार नगरों में तथा दक्षिण में पूना आदि नगरों में ऐसे अनेक कुल हैं जो 'थरादरा' कहलाते हैं । इन कुलों में से अनेक लोग जुहार करने के लिये थराद में नाणदेवी और झमकाल देवी के दर्शनों को प्रतिवर्ष आते हैं। इस समय थराद में श्वेताम्बर जैनों के ६०० घर आबाद हैं और ये श्रीमाल जैन कहाते और सभी त्रिस्तुतिक आमनाय वाले हैं।
सन् १९४८ में इन पंक्तियों के लेखक को आचार्य देव श्रीमद्विजययतीद्रसूरीश्वरजी महाराज के दर्शनार्थ थराद जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। मैंने थरादनगर को दूर दर तक उसके बाहर घूम कर देखा अनेक ढेर और खण्डेहर देखे । कलापूर्ण प्रस्तर-खण्ड देखे। अधिक आकर्षित करनेवाली एक मस्जिद देखी, जो राजप्रासाद के सिंहद्वार के बाई और है। उसमें जैनमन्दिरों के स्खण्डित पत्थर लगे हुए देखे । आंगन में एक खंड जड़ा हुआ था, जो खुला कह रहा था कि मैं मन्दिर की देहली के बाहर का पत्थर हूँ। काल के अनेक उत्पात सहन करके भी थराद आज भी सुखी, समृद और गौरवशाली है।
"Aho Shrut Gyanam"