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इस प्रतिमा का करानेवाला वेला था और प्रतिष्ठा के समय से पूर्व संभवतः मातापिता मर चुके थे। यही अनुमान सत्य है - मेरा यह दावा नहीं है ।
२. लेखाङ्क ७७ में 'जीवितस्वामि' पद का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ यह हो सकता है कि देवराजने अपने माता-पिता की जीवितावस्था में ही शीतलनाथविम्ब प्रतिष्ठित करवाया, परन्तु इससे यह सिद्धान्त स्थिर नहीं किया जा सकता कि जिस लेख में 'जीवितस्वामि' पद का प्रयोग नहीं हुआ हो वहाँ लेख के लिखानेवाले के माता, पिता, या पति उस समय से पूर्व मर चुके थे ? लेखाङ्क १८, ३१, ३६, ३७, ४३, ४६, १३९, १६१ में भी इस पद का प्रयोग है | श्रेयकर्म करानेवाली केवल स्त्रियाँ हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि 'जीवितस्वामी ' पद का प्रयोग सौ० स्त्रियों के शिलालेखों में 'अधिक' मिलता है ।
३. केवल मंगलसूचक शब्दों एवं कुछ पदों को छोड़ कर शेष प्रत्येक लेख का पूरा पूरा अनुवाद किया है । जहाँ एक ही वंश के अधिक लेख प्राप्त हुए हैं, वहा उनका वंशचक्र भी देने का प्रयत्न किया गया है। परस्पर मिलनेवाले दो या अधिक लेखों के नीचे चरण-लेख दिया गया है । जिन लेखों में दुर्बोधता एवं अस्पष्टता है, उनको यथाशक्या स्पष्ट करने का पूरा पूरा यत्न किया गया है । प्रत्येक लेख
"Aho Shrut Gyanam"