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________________ जैसलमेर में कई प्रभावश लो धर्मात्मा ओसवंश वाले अपनी कोर्ति छोड़ गये है। इन में से शा वंशजों के विषय में लिखना आवश्यक । “भांडशालिक' ( भणशालो ) और 'बहुफणा' ( वाफणा ) इन दो वंशों के नाम विशेष उल्लेख योग्य है । भणशाली वंश ऐसा प्रवाद सुनने में आता है और 'लोद्रवः' के शतदलान यंत्र के लेख नं० २५४३ से सूवित होता है कि प्रावोन काल में सगर राम के दो पुत्र श्रीधर और राजधर जैन धर्म में दीक्षित होकर लोद्रपुर पत्तन में श्रोविन्तामणि पानाथजी के मंदिर बनवाये थे । वही प्राचीन मंदिर नष्ट हो जाने से सं० १६७५ में जैसलमेर निवासी भाशाली गोत्रीय सेठ थाहरूसाहजी ने उसका जीर्णोद्धार कराया । अपने पास भवन में भी आपने देरासर को प्रतिष्ठा कराई थी और शास्त्र भंडार भराये थे जो अद्यावधि वर्तमान है। सेठ थाहरूसाहजी लोवा के मंदिर को प्रतिष्ठा के कुछ समय के बाद हो बड़ा संघ निकाल कर तीर्थयात्रा को पधारे थे और श्रोशत जय तीर्थ की यात्रा करके वहां खरतराचार्य श्रीजिनराजसरि से सं० १६८२ में श्रीआदिनाथजो से लेकर श्रीमहायोरस्वामो तक २४ तीर्थ करों के १४.२ गणधरों की पादुका यहां के स्वर रवशी में प्रतिष्ठा कराई थी। यह सब हाल वहां के शिलालेख से मिलते हैं। भारत सरकार के तरफ से प्रकाशित एपिग्राफिश इंडिका द्वितीय स्वंड में० २६ में यह लेख * छपा है और यह पुस्तक दुष्प्राप्य होनेके कारण लेखे यहां प्रकाशित किया जाता है :(१) ॥ओं ॥ नमः श्रीमारुदेवा दिवईमानांततार्थ कराणां श्रीपुण्डरीकाध गौतम(२) स्वामापयतेच्यो गणधरेच्यः सन्यजनैः पूज्यमानेच्यः सेव्यमानेच्यश्च संवत । (३) १६०५ ज्येष्ठ वदि १० शुक्र श्री नेसलमेरूवास्तव्योपकेशवंशीयनांडशालिके (४) सुश्रावककर्त्तव्यताप्रवीणधुरीण सा श्रीमद नार्या चापलदे पुत्र पवित्र चरित्र । (५) लोडवापत्तनकारितजोर्णोद्वारविहारमंडनश्रीचिंतामणिनामपार्श्वनाथाजिराम(६) प्रतिष्ठाविधायकप्रतिष्ठासमयाईसुवर्णलजनिकाप्रदायकसंघनयककरणीय(9) देवगुरुसाधम्मिकवात्सल्यविधानप्रनासितसितसम्यक्त्वशुद्धिप्रसिद्धसप्तक्षेत्रव्ययविदि. (प) तश्रीशत्रुजयसंघलब्धसंघाधिपतिलक सं थाद [डूनामको ] द्विपंचाशत्तरचतुर्दश(ए) शत १४५३ मितगणधराणां श्रीपुंडरीकादिगौतमानानां पाडुकास्थानमजातपूर्वम(१०) चीकरत् खपुत्रहरराजमेघराजसहितः समेघमानपुण्योदयाय प्रतिष्ठितं च श्रावह. (११) खरतरगठाधिराज श्रीजिनराजसूरिसूरिराजैः पूज्यमानं चिरं नंदनात् ॥ • यह लेक मुनि जिनविजयजी कृत प्राचीन जैन लेख संग्रह ( नं० २६ ) पृ० ३४ में छपा है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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