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ओसवाल ज्ञाति
आजक र ओर २ उन्नति के साथ इतिहास प्रेम को भी जागृति दिखाई पड़ती है। लोग अपने २ कौम को उत्पत्ति और प्राचीन इतिहास के सोध खोज में तत्पर है । वेद इसो विषय का है कि इतिहास पर सच्चे प्रेम को नूसना से अपने नामवरी को ओर हो ज्यादे ध्यान रखते हैं। पूरी सोध खोज और परिश्रम से विशुद्ध प्रमाण संगृहीत होने पर जो कुछ लिखा जाता है वह बड़े काम को होती है।
ओमान्द्रों की उत्पत्ति के विषय में इतना कहना यथेष्ट है कि प्राचीन जैनावार्यों द्वारा राजपूत लोग प्रतियोधित होकर जेन धर्म में दीक्षित हुए थे। पश्चात् उपवेश अर्थात् 'ओसवाल' नाम की सृष्टि हुई थी । इस सृष्टि के समय का अब तक कोई निर्दोष प्रमाण नहीं मिलेगा, तब तक ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति के समय का कोई निश्चित सिद्धान्त करना अनुचित सा है । इतना तो निविवाद कहा जा सकता है कि 'ओसवाल में 'मोस' शब्द हो प्रधान है । 'ओस' शब्द भी 'ऊपस' शब्दका रूपान्तर है और 'एस' 'उपकेश' का प्राकृत है। इसी प्रकार मारवाड़ के अन्तर्गत 'भोशियां' नामक स्थान भी 'उपकेश नगर' का रूपान्तर है। जनावार्य रत्नप्रभसूरिजो वहां के राजपूतों की जीवहिंसा छुड़ा कर उन लोगों को दीक्षित करने के पश्चात् वे राजपूत लोग उपकेश अर्थात् ओसवाल नाम से प्रसिद्ध हुए।
भाट भोजकों के कवित्त और जैन यतिओं के दफ्तर में इस उत्पत्ति के समय की कथा कई प्रकार की मिलती है । अद्यावधि इस समय को निश्चित करने का कोई भी ऐतिहासिक विश्वसनीय प्रमाण मेरे देखने में नहीं आये । जहां तक मैं समझता हूं-( मेरा विवार भ्रमपूर्ण होना भी असम्भव नहीं } प्रथम राजपूतों से जैनी बनाने वाले श्रीपाश्वनाथ सन्तानोय श्रीरतप्रभसूरि नामके अनाचार्य थे । उक्त घटना के प्रथम श्रीपार्श्वनाथस्वामी के पट्ट परंपरा का नाम उपकेशगच्छ भी नहीं था । श्रीवोर निर्वाण के ६८० वर्ष के पश्चात् श्रीदेवर्द्धिगण क्षमाश्रमण जिस समय जैनागम को पुस्तकारूढ़ किये थे उस समय के जेन सिद्धान्तों में और श्रोकल्पसूत्र की स्थविरावली आदि प्राचीन ग्रन्थों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है । उपरोक्त कारणों से संभव है कि सं० ५०० के पश्चात् और सं० १००० के पूर्व किसो समय उपकेश (ओसवाल ) ज्ञाति की उत्पत्ति हुई होगो और उस समय से उपकेशगच्छ नामकरण हुआ होगा। जहां तक मैं समझता हूँ उस स्थान का उपकेश पत्तन (ओशियां ) भी प्राचीन नाम नहीं था । उच्चवर्ण के हिन्दुओं को जैनो बनाने की क्रिया तो प्रथम से हो जारी थो । विक्रम को १४ वीं शताब्दि तक यह कार्य अबाधा से होता रहा और ओसवंश भी बढ़ता रहा । गोत्रों की सृष्टि का इतिहास तो और भी रहस्यपूर्ण और अलौकिक घटनाओं की कथा में समबद्ध है। कहीं स्थान के नाम से कहीं प्रभावशाली पूर्वजों के नाम से, कहीं आदि वंश्न के नाम से, कहीं शरापारिक कार्य की संज्ञा से, और कहीं अपने प्रशंसनीय
"Aho Shrut Gyanam"