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[ १७३ ] (५) ॥ श्रीश्रादिनाथ विवं । प्र श्रीवृहत्खरतरगबाधीश श्रीजिनराजसूरिनिः॥
स्तंन पर।
[2567] : (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष सु (२) दिए जणसाली संघवी (३) थाहरूकेण श्री आ (४) दिनाथ देवगृह स्व स (५) धुनार्या सुहागदेवी (६) पुण्यार्थमकारि प्रति
(७) ठित श्रीजिनराज
मंदिर नं०२
मूलनायकजी पर।
[2568] + ( १ ) श्रीवुअपुरपत्तने श्रीमत् श्रीवृहत्खरतरगनाधीशैः (२) ॥ों ॥ संवत् १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १५ गुरौ ॥ श्रीअजितनाथबिंब काण
सं० थाहरू जार्या श्रा
* प्रथम मंदिर के दक्षिण तरण तोरण स्तंभ पर यह सात पंक्तियों का लेख खुदा हुआ है। इसकी लम्बाई आठ इंच और चौड़ाई सात इंच है। C. O. S. No. 21 के परिशिर न० १० में यह लेख छपा है। इसमें 'श्रीजिनराजसूरिभिः' पाठ है परन्तु लेख की अंतिम पंक्ति में केवल 'जिनराजि' स्पष्ट है।
• यह मंदिर भूल मंदिर के पश्चात् भाग में दक्षिण पच्छिम कोण में अवस्थित है। यह लेख श्वेतपाषाण की मूलनायकजी की मूर्ति पर है और G.O. S. No. 21 के परिशिष्ट नं० ८ में प्रकाशित हुआ है।
"Aho Shrut Gyanam"