________________
[ १६४] ( केंद्र में ) *
( मंः १००
( उपरि भागमें )
( दाहिना अंश)
(१) इत्थं पार्श्वजिनेश्वरो जुवन दिक्कुंच्यंगचं (२) प्रात्मके वर्षे वाचकरनसारकृपया राका (३) दिने कार्तिके । मासे लोऽपुरस्थितः शतद (४) लोपेतेन पझेन सन् नूतोयं सहजादिकी (५) र्तिगणना कल्याणमालाप्रदः ॥ २५ ॥
* केंद्र में जो ‘म: १०० लिखा हुआ है वही सांकेतिक वर्ण है, अर्थात् यंत्र के सौ पखड़ियों में लिखे हुए पञ्चीस श्लोकों के सौ चरणों का अंत अक्षर है।
केंद्र के अतिरिक्त वृत्त के परिधि में सौ पखड़ियों के सौ कोठे बने हुये है। उन सबों के चरणों के जो प्रथम अक्षर हैं उन से भी इस प्रकार श्लोक बनते हैं :
श्रीवामातनयं नीतिलताधं न घनागमं । सकला लोक संपूर्णकायं श्रीदायकं नजे ॥१॥ . कला केलि कलंकामरहितं सहितं सुरैः। संसार सरसी शोष नास्कर कमलाकरं ॥२॥ सहस्र फणता शोजमान मस्तक मालयं । खोडपतन संस्थान दान मानं क्षमा गुरुं ॥ ३॥ स्मरामिचं
"Aho Shrut Gyanam"