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(३१) जीरा दरसण करण नैं आयो उठे पांणी नहीं यो गैवाऊ नदी नीसरी श्रीगोडीजी नैं हाथी रे होदै विराजमान कर संघ नैं दरसण दि० प्र ( ३३ ) इकलग करायो चढापै रा साढा तीन लाख रुपया आया सवा महीनो रह्या जीमण घणा हुवा श्रीगोडीजी रै विराजण नै वको चोतरो
( ३३ ) पक्का करायो ऊपर बतरी बलाई घणो द्रव्य खरच्यो बडो जस थायो अक्षत नाम कीयो साथै गुमास्तो महेसरी सालगराम हो जिसनें जै
( ३४ ) नग शिवरा सर्व तीर्थ कराया पढ़ें अनुक्रमे संघ पाली थायो जीमल १ करने दानमल कोटे गयो जाई ४ जेसलमेरु याया डेरा दरवाजे
( ३५ ) बाहिर कीया पबै सामेलो बमा घाट सूं हुवो श्रीरावलजी सांम पधाखा हाथी रे हो संघव्यां नैं श्रीरावलजी परे पूवै बैसाण नै
( ३६ ) सारा सदर में हुय देग जुहार उपासरै आय हवेल्यां दाखल दुवा प सर्व मदेसरी वगैरे बत्तीस पोन ने लुगायां समेत पांच पकवान
( ३७ ) सूं जीमायो ब्राह्मणा नैं जये दीव एक रुपयो दिour से दीयो पढे श्री रावलजी जनानै समेत संघव्यां री हवेली पधारया रुप्यां सूं चांतरो
(३०) कीयो सिरपेच मोत्यांरी कंठी कड़ा मोती डुलाला नगदी हाथी घोड़ा पालखी नीजर कीया पाठा श्रीरावलजी इण मुजब हीज सिर.
( ३ ) पात्र दीयो एक लुवोजी ताबां पत्रां पट्टे दीयो इतो इजाफो कीयो आगे पिणारी हवेली उदैपुर गणोजी कोटेश महारावजी
"Aho Shrut Gyanam"