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[2500] * (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपाश्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७१५ वर्षे मार्गशीर्ष मासे बहुलपदे (२) त्रयोदश्यां तिथौ सोमवासरे स्वातिनक्षत्रे शुभयोगे एवं शुभदिने महागनन
श्री(३) पयसिंह जीविजयराज्ये वृहत्वरतरवेगडगळे वेगडा शाष जंगमयुगप्रधान नट्टारक
श्री जिने (४) श्वरसूरिषट्टे जट्टारक श्रीजिनचं सूरि तस्पट्टे नहारक श्रीजिन लमुडमूरि
तत्पट्टे श्री (५) जट्टारक श्रोजिनसुंदरसूरि तपट्टालंकार श्री जट्टारक प्रीजिन नदयापूरीश्वराणा (६) तत् ॥ पूज्यपादुकानि जट्टारक श्रीजिन चंद्रसूरण सुपय स्थापितानि प्रतिष्टानि च
[250] (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७४३ वर्षे शाके (१) १७०७ प्रवर्त्तमाने मार्ग मासे कृष्णपदे नवम्यां ए तिथौ शुक्र (३) स्वातिनदात्रे धृतियोग तैतलकरणे एवं पंचांग शुद्धौ ॥ श्रोजेसन (४) मेरुजुर्गे। रावलजी श्री १०५ श्रीमूनराजजी विजयराज्य श्री. (५) मरखरतरवेगडगळे जट्टारक श्री १०७ श्रीजिनेश्वरसूरिविजय (६) राज्ये । महोपाध्याय श्री १०५ श्री जयोवल नजो गणानां धुंन पा.
* इस स्तंभ के उत्तर की तरफ भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिजी की पादुका, पूरब की तरफ पूज्य भट्टारक धासमुद्रापरि जी को दुका और दक्षिण पूरव मा श्रीजिन पुन्दरमूरिजी की पादुका प्रतिष्ठित है।
"Aho Shrut Gyanam"