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JAIN INSCRIPTIONS.
जैन लेख संग्रह।
दूसरा खएक।
कलकत्ता। श्रीआदिनाथजी का देरासर। कुमारसिंह हाल-न० ४६, इण्डियन मिरर स्ट्रीट ।
धातु की मूर्तियों पर।
__ [1001 ] * (१) पजक सुत अंब (३) देवेन ॥ सं.१७७७
[386]x (१) बहाल सत्क सं
* चित्र देखो। लेख पश्चात् भागमें खुदा हुआ है। यह प्राचीन मूर्ति भारतके उत्तर पश्चिम प्रान्त से प्राप्त हुई है। दोनों तर्फ कायोत्सर्ग की खड़ी और मध्यमें पद्मासनकी बैठी मूर्तिये हैं। सिंहासमके नीचे नवग्रह और उसके नीचे वृषभ युगल है, इस कारण मूल मूर्ति श्रीआदिनाथजी की और यक्ष यक्षिणी भावियों के साथ बहुत मनोक्ष और प्राचीन है।
x यह लेख प्रथम खण्डमें छपा था, पुनः जोधपुर निवासी पण्डित रामकर्णजी का यह संशोधित पाठ है। इसमें भी दोनों तर्फ कायोत्सर्गफी और मध्यमें पद्मासनकी मूर्ति है और गुजरात प्रान्तसे मिली है।
"Aho Shrut Gyanam"