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________________ ( १५ ) जामनगर-काठियावाड़। श्री शांतिनाथजी का मन्दिर-बद्धमान सेउवाला । शिला लेख {1781] (शिरोजाग) जाम श्री लक्षराजराज्ये ॥ १। ॥ ए७० ॥ श्री मत्ााजिनः प्रमोदकरणः कल्याणकंदांबुदो। वि. २। नव्याधिहरः सुरासुरनरैः संस्तूयमानकरः ॥ सप्पाको जविनां म. ३। नारथतरुव्यूहे वसंतोपमः । कारुण्यावसथः कलाधरमुखो नी. ।। लडविः पातु वः॥१॥ कीड़ों करोत्यविरतं । कमलाविश्वास। स्थानं ५। विचार्य कमनीयमनंतशोनं । श्री उज्जयंतनिकटे विकटाधिना. ६। थे। हाद्वारदेश अवनि प्रमदाललामे ॥ ५॥ उत्तुंगतोरणमनोहरछ। वीतराग। प्रासादपंक्तिरचनारुचिरीकृतो:। नंद्यान्नवीनग । री वितिसुन्दरीणां वक्ष:)स्थले लक्ष ति साहि खनिकेव ॥३॥ सौराष्ट्रनाए। थः प्रति विधत्ते । कहाधियो यस्य यानिति । बर्मासनं यति मालवेशो १०। जीव्याद्यशोजितस्यकुलावतंसः ॥ ४॥ श्रीवीरपट्टकमसंगतोऽभूत् जाग्या११। धिकः श्रीविजयेंऽसूरिः। श्रीमंधरैः प्रस्तुतसाधुमार्गश्चक्रेश्वरोदत्तवरप्रसा११ । दः ॥ ५॥ सम्यक्त्रमागर्गो हि यशोधनाहो । दृढ़ीकृतो यत् सपरिक दोऽपि । १३ । संस्थापित श्रीविधिपदगछः । संघेश्चतुर्धा परिसेव्यमानः ॥ ६॥ पट्टे तदीये ज. १४ । यसिंहमूरिः । श्री धर्मघोषोऽथ महेंसिंहः । सिंहनश्चाजितसिंहसूरि । २५ । देवेंधसिंहः कविचक्रवत्तीं ॥ ॥ धर्मप्रनः सिंदविशेषकाहः । श्री मा * जामनगर का सेठ वर्द्धमान शाहका बनाया हुआ प्रसिद्ध मन्दिर का यह लेख वहां के पण्डित हीरालालजी हस. राजजी ने अपने “जैनधर्म नो प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक के २ य भाग के पृष्ट १७७-१७६ में अक्षरान्तर छपवाया था. आचार्य महाराज मुनि जिनविजयजी ने अपने प्राचीन जैन लेख संग्रह के २य भागमें पृष्ठ २९६ से २६८ में प्रकाशित किया है, परन्तु मूल शिलालेख की प्रत्येक पंक्तियां दोनों में स्पष्ट नहीं है इस कारण यहां पुन: प्रकाशित किया गया। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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