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( १४५ ) महारक श्री सुमतिकीर्ति गुरूपदेशात् हुंचड़ ज्ञातीय वजीयाणा गोत्रे साधारा नाप राणी सुप दादा जाप हरबमदे सुत सा जगा नाप जगमादे ब्रा० जयवंत जाण जीवादे चा० जेला नाय काका सुत बवृथा युतैः श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकरदेव नित्यं प्रणमंति ॥
श्री दादाजी का मंदिर - जौह्रीवाग । श्वेत पाषाण के चरणों पर।
[1687] संवत् १५१३ शाशिवाइन शाके १७७० प्रवर्तमाने तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां ॥ ५ ॥ शुक्रवासरे जं। यु । प्र । नहारक श्री जिनकुशल सूरि पाकुका लक्षण पुर वास्तव्य श्रीसंघेन कारितं वृहत् जट्टारक खरतर गढीय श्री जिननंदिवर्धन सूरि पट्टालंकृत श्री जिनजयशेखर सूरिचिः॥ श्रयोस्तु ॥ श्री ॥
अयोध्या। यह बहुत प्राचीन नगरी है। प्रथम तीर्थकर श्री रुपनदेवजी का व्यवन, जन्म, और दीक्षा ये तीन कल्याणक यहां हुए। दूसरे तीर्थकर श्री अजितनाथजी का च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये ४ कट्याणक और चतुर्थ तीर्थंकर श्रो अभिनन्दनजी का च्यवन, जन्म, दीका और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक और पांचवें तीर्थंकर श्री समतिनाथजो का च्यवन जन्म दीका और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक तथा चौदहवें तीर्थंकर श्रो अनन्तनाथजी का च्यवन जन्म दीक्षा और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक इसी नगरी में हुए, श्री महावीर स्वामी के नवमें गणधर श्री अचलवाता इसी अयोध्या के रहने वाले थे। रघुकुलतिलक श्री रामचन्झजी सदमणजी आदि जी इसी नगरी में पैदा हुए थे।
"Aho Shrut Gyanam"