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________________ वीरू सुत अर्जुन सहिद वाद पुत्री श्राजुमाश्रय पे श्री कुंथुनाथ चतुर्विशति एख कारितः प्रतिष्ठितो वृक्ष तपाप नहा श्री इनसागर सूरिनिः ॥ [29] । संवत् १५५५ वर्षे फागुन शुदि तृतीया ३ कियो बुध ॥ श्री पटीलिया गोत्रे । साए पोल । तत्पुत्र घेता। तत्पुत्र रूपा । तत्पुत्र गई। । तत्पुत्र मोहण । नत्पुत्र एडा पुत्रौ छौ। चांपा पाहा। चांपा स्वनिजपुरयार्थ । स्वयशस च । श्री चतुर्विशति पी कारितवान् प्रतिष्ठितः श्री राजगडीय श्री पुण्यवर्धन सूरिनिः ॥ श्रेयस ॥ श्री संजनाथजी का मंदिर - फुलवाली गली। श्याम पाषाण के मूर्तियों पर। [ 150] सं० र माघ सुदि ५ मामे श्री गौड़ी पार्श्वनाथ विवं का० । उस वंशे सखलेचा गोत्रे महनाव "। [15031 सं० १00 माघ सुदि ५ सामे श्री चंचानन शास्वतजिन विर्ष कारितं उस क्शे कुचेरा गोत्र वसंतलालस्य नार्या ... । धातु की मूर्तियों पर। [1004] श्री मूलसंघ वघरवासान्वये बांका मेला प्रणमति । [1506] सं १७२७ माघ सु० १३ बु।। वंशे डागा गोत्र सेटमस तद्भार्या गिलहरी ताज्या श्री पाश्वनाथ जिन विंबं का० । वृज । खर । ग। श्री जिचं सुरिनिः। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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