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________________ कुटिल लिपि. मोखरियों के लेख और मुद्रा, वर्णलात के समय के बसंतगढ़ के लेख, राजा हर्ष के दानपत्रादि', नेपाल के अशुवर्मन के लेखों, मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा शीलादित्य और अपराजित के लेखों, मगध के गुप्तवंशी आदित्यसेन और जीवितगुप्त (दुसरे) के लेखों, कुदारकोट के लेख झालापण से मिले हुए राजा दुर्गगण के लेखों कोटा के निकट कस्वा ( कण्वाश्रम) के मंदिर में लगी हुई राजा शिवगण की प्रशस्ति, बनारस से मिले हुए पंथ के लेख कामां ( कामवन ) से मिले हुए यादवों के लेख, जाखामंडल की प्रशस्ति", चंदा राज्य से मिले हुए राजा मेरुवर्मन के लेखों", राजपूताना और मालव से मिले हुए प्रतिहार (पड़िहार ) वंशियों के लेखादि ६३ 1. मौखरी ( मुखर) वंशी राजा ईशानधर्मन् का हड़ाहा का शिलालेख वि. सं ६११ ( ई. स. १५४) का है (सरस्वती ई. स. १६१६. पृ. १-५३ ) श्रासीरगड़ से मिली हुई ईशानधर्मन् के पुत्र शवर्मन् की मुद्रा में कोई सवत् नहीं है । क्ली गु इंसेट ३० 4 ) अनंतवर्मन के बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों की गुफाओं के लेखों (फ्ली: गु. ई. प्लेट ३० B.३१ और E) में भी संवत् नहीं मिलता परंतु उसका ई. स. की छठी शताब्दी के अंत के आस पास होना अनुमान किया जा सकता है. जनपुर का लेख भी जिसका प्रारंभ का हिस्सा बचने नहीं पाया, संभवतः उपर्युक्त ईशानवर्मन के समय का हो (फली गु. ईप्लेट ३२ ). ५. यह लेख वि. सं. ६८२ (ई.स. १२५-६) का है (ऍ. इं; जि. ६, पृ. ११० के पास का लेट). बैसवंशी राजा हर्ष का बंसखेडा का दामपत्र हर्ष संवत् २२ (वि. सं. ६२६-१ ) का (ऍ. ई. जि. ४, पृ. २१० के पास का प्लेट ) और मधुवन से मिला हुआ दानपत्र हर्ष संवत् २५ ( ई. स. ६३१ ) का है ( पॅ. पं; जि. १. पृ. ७२-७३ ). सोनपत से मिली हुई उक्त राजा की मुद्रा (फ्ली: गु. ई ट ३२ ) में संवत् नहीं है. 5. अंशुवर्मन के समय के लेखों में से एक में संवत् ३१६ ( या ३१८१) है (ई. ए. जि. १४, पृ. ६८ : ज. ने; ४. ७४) जिसको गुप्त संवत् माना जावे तो उसका समय ई. स. १३५-६ (या ६३७-८१) होगा. उसके दूसरे लेखों में संवत् ३४, ३६.४५ (१) और ४८ मिलते हैं (बं; ज. ने: पृ. ४. ई. एँ: जि. ६. पृ. १७०-७१). यदि इन संवतों को हर्ष संवत् माने तो इनका समय ई. सं. ६४० से ६५४ तक स्थिर होगा. 1. मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा शीलादित्य ( शील ) के समय का एक शिला लेख वि. सं. ७०३ ( ई. स. ६४६ ) का मेवाड़ के भीम इलाके के सामोली गांव से मिला है जो मैंने राजपूताना म्युजियम ( अजमेर) को भेट किया. यह लेख अभी तक छुपा नहीं है. राजा अपराजित का लेख वि. सं. ७१८ (ई.स. ६६१ ) का है ( ऍ. जि. ४, पू. ३० के पास का सेट ). 4. आदित्य सेन के समय के तीन लेखों में से दो में संवत् नहीं है ( ली: गुई लेट २८, और पृ. २१२ ) परंतु तीसरा को शाहपुर से मिली हुई सूर्य की मूर्ति के आसन पर खुदा है [ [ ] संवत् ६६ (ई.स. ६७२) का है फ्री २) आदित्यसेन के प्रयोत्र जीवितगुस ( दूसरे के समय का एक लेख देवनांक से मिला है वह भी बिना संवत् का है (की; गु. सेट २६ B ). ● कुवाकोट के लेख में संवत् नहीं है परंतु इसकी लिपि यादि से उसका समय है. स. की सातवीं शताब्दी अनुमान किया जा सकता है (ऍ. ई जि. १, पृ. १८० के पास का सेट ). 5 झालरापाटण से मिले हुए राजा दुर्गगण के दो लेस एक हो शिला पर दोनों ओर खुदे है जिनमें से एक वि.सं. ७४६ (ई.स. ६) का है ( ई. : जि. ५, पृ. १८१-८२ के बीच के प्लेट ) ८. शिवगण की कणस्था की प्रशस्ति वि. सं. ७६५ ( ई. स. ७३८ ) की है (ई. जि. १६, पृ. ५८ के पास का प्लेट ). इस लेख में संपत नहीं है परंतु इसकी लिपि ई. स. की ७ वीं शताब्दी के आस पास की अनुमान की जा सकता है (ऍ. इंजि. ६, पृ. ६० के पास का सेट ). ११. इस लेख में संयत् नहीं है परंतु इसकी लिपि है. स. की आठवी शताब्दी की अनुमान की जा सकती है (ई. जि. १०, पृ. ३४ के पाल का प्लेट ). १९. मड़ा के लक्खामंडल नामक मंदिर की प्रशस्ति में संवत् नहीं है परंतु उसकी लिपि ई. स. की आठवीं शताब्दी के आसपास की प्रतीत होती है (ऍ. इंजि. १, पृ. १२ के पास का प्लेट ). i १९. मेरुवर्मन के पांच लेखों में से एक शिला पर वो पॅ. चं. स्टे प्लेट ११) और चार पित्तल की मूर्तियों के श्रास मो पर खुदे हुए मिले हैं (वॉ ऍ. बं. स्टे प्लेट १०) उन सब में संवत् नहीं है परंतु लिपि के आधार पर उनका मगय ई. स. की आठवीं शताब्दी माना जा सकता है. ܪ १४. प्रतिहार राजा नागभट का बुचकला का लेख वि. स. ८७२ (ई.स. १५) का (पॅ. हं. जि. ६, पृ. २०० के पास प्लेट ); बाउक का जोधपुर का वि. सं. ८६४ ( ई. स. ८३७) का ( अ. रॉ. ए. सो ई. स. १८६४ पृ ४) कक्कुक का घटिमाले का वि. सं. ११८ ( ई. स. ८६१) का ( अ. रॉ. प. सो; ई. स. १८६५ पृ. ५१६ ); भोजदेव ( प्रथम ) का वि. सं. १०० का दानपत्र (ऍ. ई; जि. ५ . २११-२ ); और ५ शिक्षा लेख ; जिन में से देवगढ़ का वि. स. ११६ ( ई. स. ८६२ ) का Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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