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________________ प्राचीनलिपिमाला. लिपिपत्र नवा यह लिपिपत्र वासिष्ठीपुत्र पुलमायि मादि अांध्रवंशी राजाओं के नासिक के पास की गुफामों के ७ लेखों से तय्यार किया गया है. वासिष्ठीपुत्र पुलमायि के लेख में 'नु' के साथ की 'उ की मात्रा के अंत में एक माड़ी लकीर और लगी हुई है और 'व' में 'ए' को ऊपर और 'ह' को नीचे लिखा है जो लेखकदोष है. गौतमीपुत्र यज्ञशातकर्णि के लेख में पहिले 'त' को बिना कलम उठाये ही पूरा लिखा है जिससे उसकी माकृति मथुरा के लेखों के दूसरे 'न'(लिपिपत्र ६)से ठीक मिलती ही यह दोष अन्यत्र भी पाया जाता है. लिपिपत्र नवें की मूलपंक्तियों का नागरी अक्षरांतर सिंह(क) रत्री वासिठिपुतस रपुळसायिस संवहरे रकुनवौसे १०८ गिम्हाण पखे बितोये २ दिवसे तेरसे १०३ राजरो गोसमीपुतस हिमवतमेरुमदरपवतसमसारस पसिकसकमुळकसुर ठकुकुरापरात अनुपविद. भाकरावतिराजस विभाइवत पारिचातसयकलगिरिमच लिपिपत्र दसवां यह लिपिपत्र पश्चिमी क्षत्रप',चैकूटक तथा मांध्रवंशी राजाओं के सिक्कों पर के लेखों से तय्यार किया गया है. क्षत्रपों के छोटे सिखों पर लंया लेख होने से कितने एक सिकों पर के कोई कोई अक्षर अधिक सिकड़ गये हैं जिससे उनकी प्राकृति स्पष्ट नहीं रही (देखो 'य' का तीसरा रूप 'स' का दूसरा स्वप; 'का तीसरा, चौथा और पांचवा रूप; 'क्ष'का पांचवां रूप; 'ज्ञ' का दूसरा रूप), और कहीं कहीं खरों की मात्राएं भी स्पष्ट होगई हैं. कूटकों के सिक्कों में 'न,य', 'ह','त','त्र', 'व्य' और 'रण के रूप विलक्षण मिलते हैं. मांधों के सिकों के अक्षरों में से अंतिम तीन अक्षर (प, हा, हि ) उपर्युक्त गौतमीपुत्र वासिष्ठीपुत्र पुलुमाधिके लेखों से-प. जि. नासिक के लेख, प्लेर, संख्या २, पोट २, संख्या ३; प्लेट ६, संख्या ४१ पलेट ३, संख्या १. मा. स.के. जि. ४, प्लेर ५२, नातिककी लेख संख्या १४, १५ जेट ५३ संख्रा १२.१३. गौतमीपुत्र स्वामिश्रीयशसकर्णि मामवाले एक लेख से-.: जि.स.मासिक के लेख, लेटर, संख्या २३. मा.स. जि.४ पलेट ४४, (नासिक के लेख) संख्या १६. गौतमीपुष शतकर्थिके२लेको से-पै.जि., मासिक के लेख. प्लेट २, संख्या ४,५. मा. स.थे. जि., प्लेट ५३, मासिक की लेख संख्या १३, १४. पदिौतमीपुत्र स्वामिश्रीयशासकर्षि, गतिमीपुष शातकर्णि से मिन और पुराणों में दरांप्रबंशी राजामौ की नामावली का २७ वां राजा यायातकर्णि हो तो उसके लेख का समय ई. स. की दूसरीमही किंतु तीसरी शताम्दा होना ..मल पनियां चासिडी पुलमाथि के मालिक के लेस से उशत की गई है ( जि.नासिक के लेखो की प्लेट १, संख्या २. मा.स.के.जि.अ. प्लेट ५२. मासिक की लेख सं. २४). बांसवाहाराज्य के सिरवानिमा गांव से मिले हुए पश्चिमी वायपों के २४०० सिहो, राजपूताना म्युज़िमम (अजमेर) मेरा अधिक सिको तथा प्रा. रापसम् संपादित त्रिटिश म्युज़िमम में रक्खेहरमन, पत्रपभोर करको के सिकों की सूची की पुस्तक के प्लेट. ६-१७ से. * राजपूताना म्युजियम में रखे हुए अटक वंशी राजाओ के सिको तया प्रॉ. रापसन् को उपर्युक्त पुस्तक के पोट १८ से. ___. मॉ. रापसम की उपर्युक्त पुस्तक के प्लेट- से. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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