SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आह्मी लिपि. ** ई. स. १८३४ में कसान कोर्ट को एक स्तूप में से इसी लिपि का एक लेख मिला जिसको देख कर प्रिन्सेप ने फिर इन अक्षरों को पहलवी माना'. अफ़ग़ानिस्तान में प्राचीन शोध के कार्य में लगे हुए मि. मेसन को जब यह मालूम हो गया कि एक ओर ग्रीक लिपि में जो नाम है ठीक वही नाम दूसरी ओर की लिपि में है, तब उसने मिनॅन्टर, ऍपॉलॉडॉटस, हर्मिनस, बॅसिलेअस (राजा) और सॉटेरस (त्रातर् ) शब्दों के खरोष्ठी चिह्न पहिचान लिये और वे प्रिन्सेप को लिख भेजे. मि. प्रिन्सेप ने उन चित्रों के अनुसार सिक्कों को पढ़ कर देखा तो उन चित्रों को ठीक पाया और ग्रीक लेखों की सहायता से उन ( खरोष्ठी ) अक्षरों को पढ़ने का उद्योग करने पर १२ राजाओं के नाम तथा ६ खिताब पढ़ लिये गये. इस तरह खरोष्ठी लिपि के बहुत से अक्षरों का बोध होकर यह भी ज्ञात हो गया कि यह लिपि दाहिनी ओर से बाई ओर को पढ़ी जाती है. इससे यह भी पूर्ण विश्वास हो गया कि यह लिपि सेमिटिक वर्ग की है परंतु इसके साथ ही उसकी भाषा को, जो वास्तव में प्राकृत थी, पहलबी मान लिया. इस प्रकार ग्रीक लेखों के सहारे से खरोष्ठी लिपि के कितने एक अक्षर मालूम हो गये किंतु पहलवी भाषा के नियमों पर दृष्टि रख कर पढ़ने का उद्योग करने से अक्षरों के पहिचानने में अशुद्धता हो गई जिससे यह शोध आगे न बढ़ सका. ई. स. १८३८ में दो बाकट्रिशन ग्रीक राजाओं के सिकों पर पाली ( प्राकृत ) लेख देखने ही सिक्कों पर के खरोष्ठी लिपि के लेखों की भाषा को पाली (प्राकृत ) मान उसके नियमानुसार पढ़ने से प्रिन्सेप का शोध आगे बढ़ सका और १७ अक्षर पहिचान में आ गये. प्रिन्सेप की नई मि. नॉरिस ने इस शोध में लग कर इस लिपि के ६ अक्षर पहिचान लिये और जनरल कनिंगहाम ने बाकी के अक्षरों को पहिचान कर खरोष्ठी की वर्णमाला पूर्ण कर दी और संयुक्काचर भी पहिचान लिये. ५- ब्राह्मी लिपि. ई. स. पूर्व ५०० के आसपास से लगा कर ई. स. ३५० के आसपास तक ( लिपिपत्र १-१४ ). ब्राह्मी लिपि भारतवर्ष की प्राचीन लिपि है. पहिले इस लिपि के लेख अशोक के समय अर्थात् ई. स. पूर्व की तीसरी शताब्दी तक के ही मिले थे, परंतु कुछ बरस हुए इस लिपि के दो छोटे छोटे लेख', जिनमें से एक पिद्मावा के स्तृप से और दूसरा वर्ली गांव से मिले हैं जो ई. स. पूर्व की पांचव शताब्दी के हैं. इन लेखों की और अशोक के लेखों की लिपि में कोई स्पष्ट अंतर नहीं है, जैसा कि ई. स. की १४ वीं शताब्दी से लगा कर अब तक की नागरी लिपि में नहीं पाया जाता; परंतु दक्षिण से मिलने वाले भहिप्रोलू के स्तूप के लेखों की लिपि में, जो अशोक के समय से बहुत पीछे की नहीं है, ९. ज. प. सो. बंगा; जि. ३, पृ. ५५७,५६३. १. देखो ऊपर पू. २. २. विषा के लेख में दीर्घ स्वरों की मात्राओं का अभाव है और बलों के लेख में 'ई' की मात्रा का जो चिह्न है वह अशोक और उसके पिछले किसी लेख में नहीं मिलता (देखो ऊपर पृ. २-३, और पृ. ३ का टिप्स २). Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy