________________
༣ད
प्राचीलिपिमाला
'ही' नामक एक समाज भारतवर्ष की उस समय की राजधानी कलकत्ता नगर में स्थापन हुआ, और बहुत से यूरोपियन तथा देशी विद्वान अपनी अपनी मधि के अनुसार भिन्न भिन्न विषयों में उक्त समाज का उद्देश्य सफल करने की प्रवृत्त हुए कितने एक विज्ञानों ने ऐतिहासिक विषयों के शोध में लग कर प्राचीन शिलालेख, शनपत्र, सिक्के तथा ऐतिहासिक पुस्तकों का टटोलना प्रारंभ किया. इस प्रकार भारतवर्ष की प्राचीन लिपियों पर प्रथम ही प्रथम विद्वानों की दृष्टि पड़ी.
ई. स. १७५ में चार्म विल्किन्स में दीनाजपुर जिले के बदाल नामक स्थान के पास मिला हुआ एक स्तंभ पर का हेल' पढ़ा. जो बंगाल के राजा नारायणपाल के समय का था उसी वर्ष में पंडित राधामी नेपाली के अशोक के वाले स्तंभ पर खुदे हुए अजमेर के चौहान राजा देव (आना) के पुत्र बीसलदेव (विग्रहराज-बी) के तीन लेख पड़े जिनमें से एक [ विक्रम ] सं. ५२० वैशाख शुनि १५' का है. इन सब की लिपि बहुत पुरानी न होने से ये आसानी के साथ पदे गये. परंतु उसी वर्ष में जे. एच. हॅरिंग्टन ने बुद्धगया के पास वाली नागार्जुनी' और वराबर की गुफाओं में उपर्युक्त लेखों से अधिक पुराने, मौरी वंश के राजा अनंतवर्मन् के तीन ले पाये, जिनकी लिपि गुप्त के समय के लेखों की लिपि से मिली हुई होने के कारण उनका पढ़ना कठिन प्रतीत हुआ, परंतु चार्ल्स विल्किन्स ने ई. स. १७०५ से ८ अ कर के उन तीनों लेबों को पढ़ लिया जिससे गुप्तलिपि की अनुमान आधी वर्णमाला का ज्ञान हो गया.
ईस १८१८ से १८२३ तक कर्मस जेम्स टॉड ने राजपुताना के इतिहास की खोज में लग कर राजपुताना तथा काठियावाड़ में कई प्राचीन लेखों का पता लगाया जिनमें से ई. स. की ७ वीं शताब्दी से लगा कर १५ वीं शताब्दी तक के कई लेख उक्त विज्ञान इतिहास लेखक के गुरु पनि ज्ञानचंद्र ने पड़े और जिनका अनुवाद या सारांश कर्मल दॉड के 'राजस्थान नामक पुस्तक में कई जगह छुपा है.
बी. जी. विंग्टन ने मामलपुर के कितने एक संस्कृम और तामिळ भाषा के प्राचीन लेखों को पढ़ कर ई. स. १८२८ में उनकी वर्णमाला प्यार की इसी नरर वॉल्टर इलियट ने प्राचीन कड़ी अक्षरों को पहचाना पीर ई. स. १८३३ में उनकी वर्णमालाओं को विस्तृत रूप से प्रकट किया.
. म. १८३४ में फसान ट्रॉयर ने इसी उद्योग में लग कर अलाहाबाद (प्रयाग) के अशोक के लेग्य वाले स्तंभ पर खुदे हुए गुप्तवंशी राजा समुद्रगुप्त के लेख का कुछ अंश पढ़ा और उसी वर्ष में डॉ मिल ने उसे पूरा पढ़कर है. स. १८३७ में मिटारी के स्तंभ पर का स्कंद का लेख " भी पड़ लिया.
मि. ११३१. यह लेख फिर भी कृप चुका है ( ऍ. : . . . १६६-६४ ).
+
ई. स. १७८१ में चार्ल्स बिल्किस ने मुंगेर से मिला हुआ बंगाल के राजा देवपाल का एक दानपत्र पढ़ा था, परंतु वह भी .स. १ से कृपा ( ए. रि. जि. १, पृ. १२३). यह ताम्रपत्र दूसरी बार शुद्धता के साथ छप चुका है पैः जि. २१, पृ. २४५-५७ ).
७. प. शि. जि. १. पू. ३७६-२ का भि. प. जि. २, पु. २३२-३७. ई.
जि. १६, पृ. २१.
गरावर का
ए.रि. जि. २. पू. १३७. ज. ए. सो. यंगाः जि. पू. ६७४ प्लेट ३६. सं १५, १६, १७. ई. : जि. १३. पू. ४२८. फ्लीः गु. ई: पु. २२२-२३. नागार्जुनी गुफा के २ लेख. ए. रि. जि. २, पृ. १६८. अ. ए. सो. बंगा जि. १६, प्र. ४०२: प्लेट १०. फ्ली: गु. ई पू. २२४-२७.
1.
5.
गुमवंशी राजाओं के समय की प्राचीन लिपि को गुप्तलिपि कहते हैं.
नजॅक्शन्स ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (जि. २. पू. २६४-६६:१३, १५, १७ और १८ )
मज. प. सो बंगाः जि. ३. पू. ११८.
... जि. ३, पृ. ७३.
ज. ए. सी. गंगा: क्रि. ३, पृ. ३३२.
ज. ए. सी. अंगा. जि. ६. पू. ६.
फ्ली: गु. पू. ६-१०. फ्ली: गु. ई. पू. ५३-५४.
Aho! Shrutgyanam