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________________ प्राचीनलिपिमाला. अशोक के पीछे इस लिपि का प्रचार बहुधा विदेशी राजाओं के सिको तथा शिलालेग्व आदि में मिलता है. सिना में वाट्रिमन् ग्रीक' (यूनानी), शक', क्षत्रप', पार्थिमन्', कितने एक कुरानवंशी राजा, तथा औदंबर आदि सनद्देशीय वंशों के राजाओं के मिका पर के दूसरी तरफ के माकन लेख इस लिपि में मिलते हैं. इस लिपि के शिलालेख तथा नाम्रलेग्वादि ब्राह्मी की अपेक्षा बहुत ही थोड़े और बहुधा बहुत छोटे छोटे मिले हैं जो शक , क्षत्रप, पार्थिअन्' और .. यूनान के बादशाह सिकंदर ने ई. स. पूर्व ३२६ में हिंदुस्तान पर चढ़ाई कर पंजाब के कितने गक हिस्से और सिंध पर अपना अधिकार जमाया. ये इलाके तो यूनानियों के अधिकार में १० वर्ष भी रहने न पाय परंतु हिंदुकुश पर्वत के उत्तर के पारिश्रा। बलरय ) देश में यूनानियों का गज्य दृद्ध हो गया. जहां के राजा युथिहिमस् के समय मभवनः उसके पुत्र उमदिअस की अधीनता में ई.स. पूर्व की दूसरी शताब्दी के प्रारंभ के आसपास फिर यूनानियों को बढ़ाई इस देश पर हुई और कावुल तथा पंजाब पर फिर उनका अधिकार हो गया, और ई.स. पूर्व की पहिली शतादी के अंत से कुछ पहिले तक कई यूनानी गजाओं का राज्य, घटता बढ़ता, बना रहा. उनके सिके. अफगानिस्तान तथा पंजाब में बहुत से मिल आते हैं जिनपर एक और प्राचीन ग्रीक (यूनानी) लिपि के, तथा दूसरी ओर बहुधा खरोष्ठी लिधि के प्राकृत लेख है। (गा. क. श्री. सी. किं. बा.: प्लेट ३-३५. हा कॅ. कॉ. पं. म्यू: जिल्द लट ३-६, श्रीर स्मि, कॅ: कॉ.ई म्युः शेर-६). १. शक लोगों ने यूनानियों से धादिया का राज्य छीना जिसके पीछे वे हिंदुकुश पर्वत को पार कर दक्षिण की ओर बढ़े और उन्होंने पश्चिम में हिरात से लगा कर पूर्व में सिंधु तक का देश अपने अधीन किया फिर ये क्रमशः प्रागे बढ़ते गये उनके सिकों पर भी एक ओर यूनानी और दूसरी ओर खरोष्ठी लिपि के लेख है (गाः के. पी सी किं. या ई: प्लेट १६२१. हा कॅ. कॉ. पं. म्यूः जिल्द सेट १०-१४, और स्मिः कॅ. कॉ. इं. म्युः सेट ८६). , 'क्षत्रप शब्द संस्कृत शस्ली का सा दाखने पर भी संस्कृत कानही किंतु प्राचीन दंगनी भाषा का है, जिसमें क्षत्र या क्षत्र शब्द का अर्थ 'लिला' और 'पाप' का अर्थ जिले का हाकिम होता है. ये क्षत्रप भी बहुधा शक ही थे और प्रारंभ में शक राजाओं की तरफ से ज़िलों के हाकिम या सामंत रहे परंतु पीछे से स्वतंत्र भी हो गये. देश भेद के अनुसार सापों के दो विभाग किये जा सकते है.--'उत्तरी अर्थात् तक्षशिला, मथुरा आदि के और पश्चिमी अर्थात् मालवा, राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ और दक्षिण के. उत्तरी सत्रों में से मनिगुल के युव जिहानिस मास के पुत्र खरमोस्त तथा रंजुबुल (राजुल) आदि के सिकों पर और पश्चिमी क्षत्रपों में से केवल भूमक, नहपान, और चपन के सिक्कों पर खरोष्टी लेख मिलते हैं (बाकी सब के सिक्को पर दूसरी और प्राली के लेख है). ५. पार्थिअन् राजा भी शक जाति के ही होने चाहिये, परंतु पार्थिा की मरफ से पाने के कारगा उनको पार्थिअन् कहते हैं. उनका राज्य कंदहार, सीस्तान, पश्चिमी पंजाब और सिंध तक घटना बढ़ता रहा. उनके मित्रों पर भी दूसरी तरफ खरोष्ठी लिपि के लेख है (गा के.कॉ. ग्री. ली. कि. वा.ई मेट २२-२.३, हाः कॅ.कॉ.पं. म्यू: जि. लेट २५.१६. स्मि; कॅ.कॉ. ई. म्यू: प्लेट 1. कुशनवंशी मध्य एशिया से इस देश में प्राये. कल्हण अपनी राजतरंगिणी में इस वंश के राजाओं को तुरुक (तुर्क) पतलाता है और उनके सिको पर की उनकी तस्वीरों की तुकी पोशाक कल्हण के लेख की पुएि करनी है. इनका राज्य बहुत विस्तृत हुअा और इनमें राजा कनिष्क बड़ा ही प्रतापी हुआ. इस वंश के गजाओं में से कुजुल कडफसिम , कुजुलकर कडफसिस् और वेम कडफसिस् इन तीन के सिक्का पर खरोष्ठी लेख मिलते है और कनिष्क हुनिष्क और पारसदेव के सिक्कों की दोनों ओर ग्रीक लेख ही है। गाः के. कॉ. पी. सी. कि. बा.: सेट २५-२६. हर: के. कॉ. पं. म्यु: जि., मटे १७२०. स्मिः कै. कॉ. ई. म्यूः प्लेट ११-१४. . औदुंबर और कुनिंदवंशी गजानों के पंजाब से मिलने वाले सिक्कों पर दूसरी तरफ खगेष्ट्री लिपि के नख मि .. शक वंशी राजा मोग ( मोन)के राजन्यकाल का उसके क्षत्रप पतिक का, जो क्षत्रप लिनक कु.सुलक का पुत्र था. एक ताम्रलेख ( सं. ७८ का ) तक्षशिला से मिला है (ए. जि. पृ. ५५-४६). . मथुरा के महाक्षत्रप राजुल के राज्य समय उसकी अनमहिषी (मुख्य गणी ) नदसीअकम ने मथुग में बौद्ध स्तूप तथा सर्वास्तिवादी बौद्धों के लिये संधाराम (मठ) बनवाया जिसका लेख एक धंभे के सिंहाकृति वाले सिरे पर सिंहों के शरीर पर खुदा हुश्रा मथुरा से मिला है. राजुल के पुत्र आदि के नथा उस स्तूप के उत्सय में शामिल होने वाले की अन्य पुरुषों के भी छोटे छण्टे लेख उसके साथ खुदे हुए है जिनमें से एक ऊपर कहे हुए पतिक का भी है (..: जि. पृ. १४१४७). क्षत्रप गएकपक्षक (?) के पुत्र कधिशिन इनप का एक लेख माथिकिमाल (रावलपिड़ी में करीब २० मील दक्षिण-पूर्व) के स्तूप में से मिले हुए पीतल के डिन्धे के ढक्कन पर खदा हुअा है (प.: जि. १२, पृ. २६, पार्थिान् राजा गाँडोफरस के राज्य वर्ष २६ (सं. १०३) का एक शिलालेख तख्तीवही (पंजाब के ज़िले युसफज़ई में) से मिला है (ज.प. स. १८९०, भाग, पृ. ११६ ) Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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