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________________ प्राचीनलिपिमाना. हिमिभरिदिक' लिपि के २२ अक्षरों में से केवल एक 'गिमेल' (ग) अचर रेड़ा करने पर प्रास्त्री के 'ग' से मिलता है. भरमाक' लिपि में सभी केवल एक गिमल अक्षर 'ग' से मिलता है. खरोष्ठी लिपि की वर्णमाला के ३७ अक्षरों में से एक भी अधर ब्राश्री लिपि से नहीं मिलता, लिपियों के इस मिलान को पद कर पाठक लोग यह प्रश्न किये बिना न रहेंगे कि जब बूलर फिनिशिभन् लिपि के १२ अखरों से ब्रानी के २२ अक्षरों की उत्पत्ति बतलाता है तब तुम इन लिपियों के.समान उबारया माये अचरों में से केवल एक गिमेल' (ग) अचर की ब्रानी के 'ग' से समानता होना प्रकट करते हो यह क्या पात है? इसके उत्सर में मेरा कथन यह है कि पृष्ठ २३ में प्राचीन अक्षरों का एक नकथा' दिया है जिसमें मिसर के हिमरेटिक, फिनिशिअन, हिमिभरिटिक (सेविअन्) और भरमहक लिपियों के प्राचीन अदर दिये हैं श्रीर उनके साथ ही साथ समान उच्चारण वाले खरोष्ठी तथा ब्रामी भक्षर भी दिये है. उनका परस्पर मिलान करने से पाठकों को मालूम हो ही जायगा कि सेमिटिक और ब्राह्मी लिपि में चास्तषिक समानता लितनी सी है, तो भी उनको यह जिज्ञासा रह जायगी कि समान उच्चारण वाले अचर तो परस्पर मिलते नहीं, ऐसी दशा में चूलर ने फिनिशिभन् के २२ अच से, जो ब्रानी के १८ उचारणों का ही काम दे सकते हैं, ब्रानी के २२ अक्षरों का निकलमा कैसे पता था. इस लिये इम बहार के मिलान का कुछ परिचय यहां करा देते हैं. सांटिक और ब्राह्मी लिपि की बनावट में बड़ा अंतर यह है कि फिनिशिचन् प्रादि अक्षरों का ऊपर का भोग बहुधा स्थूल होता है और नीचे का भाग खड़ी या तिरछी लकीर से बनता है परंत प्राची अधरों में से अधिक अचरों का ऊपर का भाग पतली लकीर से प्रारंभ होता है और भी मा कर स्थूलपनता है. इस वैषम्य के एकीकरण के लिये बूलर ने यह मान लिया कि 'हिंदुभाने [कितने एक] सेमिटिक अधरों को उलट दिया है अर्थात उनका ऊपर का हिस्सा नीचे और नीचे का १. मुसल्मानी धर्म के प्रादुर्भाव से बहुत पहिले दक्षिणी अरब में फिनिशिअन् से कुछ ही मिलती हुई एक प्रकार की सिपि प्रचलित थी जिसको 'हिमिरिटिक' कहते है. उन लिपि के प्राचीन लेख वहां के 'सबा' नामक राज्य में विशेष मिलने के कारण उसी लिपि को 'सेमिभन्' भी कहते है। २. पीक (यूनानी) लोग जिस प्रदेश को सीरिआ कहते थे करीब करीब उसाकी प्राचीन सेमिटिक भाषा में 'मरम्' कहते थे. उसके अंतर्गत पशिमा के पश्चिम का 'मेसोपोटमिश्रा' प्रदेश था, सिवाय पेलेस्टाइन के. वहां की भाषा और विपि को भरमा या अरमिअन् कहते हैं. इस नकशे में बस खड़ी पंक्तियां बनाई गई है, जिनमें से परिता पंक्ति में समिटिक वर्णमाला के अहरों के नाम तथा उनकी ध्वनि के सूचक अक्षर नागरी में दिये है। दूसरी पंक्ति में मिसर की हिमरेटिक खिपि के मार दिये हैं (प.नि जिल्द १, पृ. ६०० से-नशं संस्करण) तीसरी में प्राचीन फिनिशिश्नन् भक्षर (प.मि जि. १, पृ. ६०० से चौथी में मोमब के राजा मेशा के ई.स. पूर्व की नवीं शताब्दी के शिलालेख से फिनिशियन् अक्षर (ए. ब्रि, जि. ३७, पृ. ६०२ से-दसवां संस्करण)ी पांचवी में हिमिभरटिक लिपि के अक्षर (प. शि, जि. ३३, पू.१०२ से.) छठी में सकारा(मिसर में),रीमा (परब में) भादि केई स. पूर्व की पांचवीं शताम्दी के शिला लेखा से भरमा भक्षर ( ; जि. २५, पृ. २८सके सामने के मेट से); सात में मिसर के पायरसी से भरमक अक्षर ( जि. २४, पू. २६ से); भावी मैडॉ. सर डॉन मार्शल के उद्योग से तक्षशिला से मिले प्रए इ.स. पूर्व की चौथी शताब्दी के भरमहा लेख के फोटो (ज.रॉ.प. सो, ई.स. १५९५, पृ. ३४० के सामने के खेट) से अक्षर छांटे गये है। नी में समान उचारण वाले वरीष्ठी भक्षर अशोक के लेखों से लिये है, और इसी मे समान उचारण वाले प्राह्मी लिपि के मक्षर अशोक के लेखा से उद्धृत किये गये हैं. जैसे अंग्रेजी में (सी), K (के) और (क्यू) ये तीन अक्षर 'क' की धनि के सूचक है और उर्दू में 'से' 'सीन्' श्रीर स्वाद-स' की धनि के सूचक है ऐसे ही फिनिशिचन् अक्षरों में भी माठ अक्षर ऐसे हैं जो चार ही प्रशारण का काम देते है अर्थात् 'है' और 'थ' (जिससे अरबी का 'हे' और अंग्रेजी का 'पंच' निकला) इन दोनों से', 'ध' (जिससे भरवी का 'तोय') और 'ता' (जिससे 'ते' निकला) दोनों से '', 'काफ' और 'कॉफ्' से 'क,'ऐसे ही 'सामरु' (जिससे भरपी का सीन) और 'स्साधे' (जिस से 'खान' निकला) से 'स'का बजारण होता है। जिससे फिनिशिमन् २२ मारनामी के १८ उचारणों का ही काम दे सकते है। - देखो आगे पृष्ठ २३ मे दिया हुभा नाथा. देखो लिपिपत्र पहिला.. Ahol Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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