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भूमिका.
टिप्पणों में दिये हुए संस्कृत के अवतरणों को हिंदी से भिन्न बतलाने के लिये बारीक टाइप में छापना प्रारंभ किया था परंतु टाइप कमजोर होने के कारण छपते समय कई अचगें के साथ की मात्राएं, और विशेष कर 'उ' की मात्राएं, र गई जिससे परिशिष्ट में ऐसे अवतरणों के लिये पहिले से भिन्न टाइप काम में लाना पड़ा है.
इस प्रकार के पुस्तक की रचना के लिये बहुत अधिक सामग्री एकत्र करने की आवश्यकता पड़ी. इस कार्य में मेरे कई एक विद्वान् मित्रों ने मेरी सहायता की है जिसके लिये मैं उनका उपकार मानता ई. उनमें से मुंशी हरविलास सारडा पी.ए., जज, स्माल काजेज कोर्ट, अजमेर, प्रसिद्ध इतिहासवेत्सा मुंशी देवीप्रसादजी जोधपुरवाले, श्रीर या पूणेचंद्र माहर एम.ए.,बी.एल., कलकत्ता, विशेष धन्यवाद के पात्र हैं.
इस पुस्तक के संबंध में मेरे विधान मित्र परित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, पी. ए., हेड पंडित, मेयो कॉलेज, अजमेर, ने बड़ी सहायता की है जिसके लिये मैं उनका विशेष रूप से अनुगृहीत हूं. जिन विद्वानों के लेख और ग्रंथों से मैंने सहायता ली है उनके नाम यथास्थान दिये गये हैं. उन सब का भी मैं ऋषी हूं. पंडित जीयालायशर्मा ने लिपिपत्र बनाने और मि. जे. इंगलिस, मॅनेजर, स्कॉटिश मिशन प्रेस, अजमेर, ने इस पुस्तक को उत्तमता से अपने में पड़ा परिश्रम उठाया है इस लिये मैं उनको भी धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता
राजपूताना म्यूज़ियम्, अजमेर, । वि. सं. १९७५ श्रावण शुक्ला ६, ता. १३ मॉगस्ट ई. स. १९१८..
गौरीशंकर हीराचंद मोझा.
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