________________
भारतीय संवत् उसके पीछे जो अंतर पड़ा उसको पोप ग्रेगरी ने ठीक कर दिया. इम मन् का वर्ष मौर है जिसका प्रारंभ तारीख १ जनवरी' मे होता है और जो ३६५ दिन के १२ महीनों में विभक्त है. प्रति चौधे वर्ष १ दिन' फरवरी मास में बढ़ा दिया जाता है. ईसाइयों का दिन (नारीख) मध्य रात्रि से प्रारंभ हो कर दूसरे दिन की मध्य रात्रि तक माना जाता है. इस मन में ५७५६ जोड़ने से वि.सं. धनता है.
हिंदुस्तान में अंग्रेजों का राज्य होने पर इसका प्रचार इम देश में भी हुश्रा और यहां का राजकीय मन् यही है. लोगों के ममान्य व्यवहार में भी इसका प्रचार बहुत कुछ है.
१ दिन अधिक बड़ा था. इस वर्षगणना से २६ वर्ष में करीब २६ दिन का अंतर पड़ गया जिससे प्रीको के वर्षमान का अनुकरण किया गया जिसमें समय समय पर अधिक मास मानना पड़ता था. इससे भी अंतर बढ़ता ही चला और जुलियस सीज़र के समय वह अंसर १० दिन का हो गया जिससे उसने ई. स. पूर्व ४६ की ४५५ दिन का वर्ष मानकर यह अंतर मिटा दिया, किंक्टिलिस् मास का नाम अपने नाम पर से 'जुलाई रक्खा और आगे के लिये अधिक मास का मगड़ा मिटा कर ३६४ दिन का वर्ष नियत कर जैन्युअरी. मार्च, मे, जुलाई, सेवर और गबर महीने तो ३१, ३१ दिन के, वाकी के, फेब्रुअरी ( फरवरी के सिवाय, ३०, ३० दिन के और फेब्रुअरी २६ दिन का, परंतु प्रति चौधे घर्ष ३० दिन का, स्थिर किया. जुलिनस् सीज़र के पीछे ऑगस्टर ने, जो रोम का पहिला बादशाह हुश्रा, सवस्टाइलिस मास का नाम अपने नाम से ऑगस्ट रक्ला और उसको ३१ दिन का, फेब्रुअरी को २८ दिन का, सप्टेंबर और नवेयर को ३०, ३० दिन का और विसंघर को ३१ का बनाया. सी परिवर्तन के अनुसार ई. स. के महीनों के दिनों की संख्या अब तक चली आ रही है.
१. झुलिस सीज़र का स्थिर किया हुश्रा ३६५ दिन का सौर वर्ष बास्तविक सौर वर्ष से ११ मिनिट और १४ सैकंड पड़ा था जिससे करीब १५८ वर्ष में १ दिन का अंतर पड़ने लगा. इस अंतर के बढ़ते बढ़ते ई. स. ३२५ में मेष का सूर्य, जो अलिअस् सीज़र के समय २५ मार्च को पाया था, ता०२१ मार्च को आ गया और ई. स. १५८२ में ११ मार्च को मा गया. पोप ग्रेगरी (१३ वे) ने सूर्य के चार में इतना अंतर पड़ा हुआ देख कर ता०९२ फरवरी. स. १५८२ को यह प्राक्षा दी कि इस वर्ष के अक्टोबर मास की चौथी तारीख के याद का दिन १५ अक्टोबर माना जावे. इससे लौकिक सौर वर्ष बास्तविक सौर वर्ष से मिल गया. फिर आगे के लिये ४०० वर्ष में ३दिन का अंतर पड़ता देख कर उसको मिटाने के लिये पूरी शताब्दियों के वर्षों (१६००.१७०० आदि) में से जिनमें ४०० का भाग पूरा लग जाये उन्हींमै फेब्रुअरी के २६ दिन मानने की व्यवस्था की. इस व्यवस्था के बाद अंतर इतना सूचा रहा है कि करीब ३३२० वर्ष के बाद फिर दिन का अंतर पड़ेगा. पोप ग्रेगरी की माला के अनुसार रोमन केथोलिक संप्रदाय के अनुयायी देशों अर्थात् ली, स्पेन, पोर्तुगाल प्रादि में तो ता०५ ऑक्टोबर के स्थान में १५ अक्टोवर मान ली गई परंतु प्रोटेस्ट संप्रदाय के अनुयायी देशवालो ने प्रारंभ में इसका विरोध किया तो मी अंत में उनको भी लाचार इसे स्वीकार करना पड़ा. जमीवालों ने ई.स. १६६६ के अंत के १० दिन और कर १७०० के प्रारंभ ले इस पणना का अनुकरण किया. इग्लेंड में ई. स. १७५९ में इसका प्रसार हुभ्रा परंतु उस समय तक एक दिन का और अंतर पड़ गया था इसलिये ता०२ सेप्टेबर के बाद की तारीख (३) को १४ मेटेवर मानना पड़ा. रशिमा, प्रीस मादि ग्रीक चर्च संप्रदाय के अनुयायी देशों में केवल अभी अभी इस शैली का अनुकरण हुमा है. उनके यहां के दस्तावेज़ आदि में पहिले दोनों तरह अर्थात् जुलिअस एवं प्रेगरी की शैली से तारीखें लिखने रहे जैसे कि २० एप्रिल तथा ३ मे आदि.
ई.स.का प्रारंभ नारीख जनवरी से माना जाता है परंतु यह गणना अधिक प्राचीन नहीं है.सके उत्पारक डायोमिसिअस ने इसका प्रारंभ तारीख २५ मार्च से माना था और वैसा ही ई. स. की १६ व शताब्दी के पीले तक युरोप के अधिकतर राज्यों में माना जाता था. कान्स में ई. स. १६६३ से वर्ष का प्रारंभ तारीख १ जनवरी से माना जाने लगा. इंग्लैंड में स. की सातवीं शताब्दी से किस्टमर के दिन (नारीख २५ डिसेंबर) से माना जाता था. १२वीं शताब्दी से २५ मार्च से माना जाने लगा और ई. स. १७५२ से. जब कि पोप ग्रेगरी के स्थिर किये हुए पंचांग का अनुकरण किया गया, तारीख १ जनवरी से सामान्य व्यवहार में वर्ष का प्रारंभ माना गया ( इसके पूर्व भी अंग्रेज़ अंधकारों का ऐतिहासिक वर्ष तारीख जनवरी से ही प्रारंभ होता था)
1. जिस वर्ष के अंकों में ४ का माग पूरा लग जाय उसने फेब्रुमरी २६ दिन होते हैं. शतादियों के वर्षों में से जिसमे ४००का भाग पूरा लाजाय उसले २५और बाकी के २८ जेसे कि ई.स.१६०० और १००० के २१,१ दिन और २७००, १८०० और १९०० के २८, २-दिन.
Aho 1 Shrutgyanam