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________________ १३२ प्राचीनलिपिमाला. २८ - फसली सन् हिंदुस्तान में मुसलमानों का राज्य होने पर हिजरी सन् उनका राजकीय सन्हुआ परंतु उसका वर्ष शुद्ध चत्रि होने के कारण सौर वर्ष से वह करीब ११ दिन छोटा होता है इससे महीनों एवं फसलों का परस्पर कुछ भी संबंध नहीं रहता. दोनों फलों (रबी और खरीफ़ ) का हासिल नियत महीनों में लेने में सुभीता देख कर बादशाह अवबर मे हिजरी सन् ६७१ ( ई. स. १५६३ = वि. सं. १६२० ) से यह सन् जारी किया. इसीसे इसको फसली सन् कहते हैं. सन् तो हिजरी (६७१) ही रक्खा गया परंतु महीने सौर (या चांद्रसौर) माने गये जिससे इसका वर्ष सौर ( या चांद्रसौर ) वर्ष के बराबर हो गया. अत एव फसली सन् भी शाहूर सन् की नांई हिजरी सन् का प्रकारांतर मात्र है. पहिले इस सन् का प्रचार पंजाब और संयुक्त प्रदेश में हुआ और पीछे से अब बंगाल आदि देश अक्बर के राज्य में मिले तब से वहां भी इसका प्रचार हुआ. दक्षिण में इसका प्रचार शाहजहां बादशाह के समय में हुआ. अब तक यह सन् कुछ कुछ प्रचलित है परंतु भिन्न भिन्न हिस्सों में इसकी गणना में अंतर है. पंजाब, संयुक्त प्रदेश तथा बंगाल में इसका प्रारंभ आश्विन कृष्णा १ ( पूर्णिमांत ) से माना जाता है जिससे इसमें ४६२-६३ मिलाने से ई. स. और ६४६-५० मिलाने से विक्रम संवत् बनता है. दक्षिण में इसका प्रचार बादशाह शाहजहां के समय हिजरी सन् १०४६ ( ई. स. १६३६ = बि. सं. १६६३ ) से हुआ और वहां इसका प्रारंभ उसी सन् से गिना गया जिससे उत्तरी और दक्षिणी फसली सनों के बीच करीब सवा दो वर्ष का अंतर पड़ गया. बंबई इहाते में इसका प्रारंभ शाहूर सन की नई सूर्य के मृगशिर नक्षत्र पर आने के दिन से ( तारीख ५, ६ या ७ जून से ) माना जाता है और महीनों के नाम मुहर्रम आदि ही हैं. मद्रास इहाते में इस सन् का प्रारंभ पहिले तोडि (कर्क) संक्रांति से ही होता रहा परंतु , स. १८०० के आसपास से तारीख १३ जुलाई से मामा जाने बा और ई. स. १८५५ से तारीख १ जुलाई से प्रारंभ स्थिर किया गया है. दक्षिण के फसली सन् में ४६०-६१ जोड़ने से ई. स. और ६४७-४८ जोड़ने से वि. सं. बनता है. २६ - विलायती सन्. [fement सन् एक प्रकार से बंगाल के फसली सन् का ही दूसरा नाम है. इसका प्रचार उड़ीसा बंगाल के कुछ हिस्सों में है. इसके मास और वर्ष सौर है और महीनों के नाम चैत्रादि नामों से हैं. इसका प्रारंभ सौर आश्विन अर्थात् कन्या संक्रांति से होता है और जिस दिन संक्रांति का प्रवेश होता है उसीको मास का पहिला दिन मानते हैं. इस सन् में ५६२-६३ ओड़ने से इं. स. और ६४६-५० जोड़ने से वि. सं. बनता है. ३० - अमली सन् सन् विलायती सन् के समान ही है. इसमें और विलायती सन् में अंतर केवल इतना ही है कि इसके नये वर्ष का प्रारंभ भाद्रपद शुक्ला १२ से और उसका कन्या संक्रांति से होता है. इस संवत् का पक्ष के बीच में ही प्रारंभ होने का कारण ऐसा बताया जाता है कि उक्त तिथि को उड़ी के राजा इंद्रद्युम्न का जन्म हुआ था. इस सन् का प्रचार उड़ीसे के न्यौपारियों में तथा वहां की कचहरियों में है. ३१ - बंगाली सन्. बंगाली सन् को 'बंगान्द' भी कहते हैं. यह भी एक प्रकार से बंगाल के फसवी सन् का प्रकारांतर मात्र है. बंगाली सन् और फसली सन् में अंतर इतना ही है कि इसका प्रारंभ भाम्विन Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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