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________________ मादीमलिपिमाला. केलेल्याला एक सुपर्ण का पत्रा' जनरल कनिंगहाम को मिला था. पर्मा के प्रोम जिले के माया नामक गांव के पास से दो सोने के पत्रे खुदे हुए मिले हैं. उनमें से प्रत्येक के प्रारंभ में 'ये धर्महेतुमभया' श्लोक और उसके पीछे पाली भाषा का गद्य है. उनकी लिपि ई. स.की चौथी या पांचवीं शताब्दी के आस पास की है और उसमें कई अचर दक्षिणी शैली के हैं. सांवी. की नई कभी कभी चांदी के पत्रों पर भी लेख खुदपाये जाते थे. ऐसा एक पत्रा महिमोल के तप से और दूसरा तक्षशिला से मिला है. जैन मंदिरों में चांदी के गट्टे और यंत्र मिखते हैं. सवर्ण तांबा. लेखन सामग्री के संबंध में धातुओं में तथा सब से अधिक काम में आता था. राजामों तथा सामंतों की फसे मंदिर, मठ, ब्राह्मण, साधु आदि को दान में दिये हुए गांव, खेत, कुए भादि की सनदें तार पर माचीन काल से ही खुदवा कर दी जाती थी और अब तक दी जाती हैं जिनको 'दानपत्र', नपत्र', 'ताम्रशासन या 'शासनपत्र कहते हैं. दानपत्रों की रचना अमात्य (मंत्री), सांधिविग्रहिक बलाधिकृत (सेनापति) या अक्षपटलिक आदि अधिकारियों में से कोई स्वयं करता या किसी विद्वान् से कराता था. कहीं उस काम के लिये एक अधिकारी भी रहता था. फिर उसको सुंदर अक्षर लिखनेवाला लेखक तांबे के पन्ने पर स्याही से लिखता और सुनार. ठठेरा, मुहार या कोई शिरूपी उसे खोदता था. कभी कभी ताम्रलेख रेखारूप में नहीं किंतु पिदिनों से खुदे हुए भी मिलते हैं. जिस पुरुष की मारफत भूमिदान की सनद तय्यार करने की राजाज्ञा पहुंचाती उसको 'दूतक' कहते थे. दूतक का नाम बहुधा दानपत्रों में लिखा रहता है. दक्षिण से मिले १. कमा. स.रिजि .२, पृ. १३० और सेट ५६. १. प.जि.५, पृ. १०१और उसी के पास का प्लेट. 8. ज.र.ए. सोः ई. स. १६१४. पृ.९७५-७६ और.स. १६१५, प्र. १९२के सामने का प्लेट. .. जैन मंदिर में मूर्तियों के साथ पूजन में रखे हुए चांदी के गहे गोल प्राकृति के होते है जिनपर 'नमोकार मंत्र' (नमो अरिहंताएं ) आठ दल के कमल और मध्य के वृत्त, इन नय स्थानों में मिल कर पूरा खुदा हा होने से उसको 'नषपदजी का गट्टा' कहते हैं. ऐसे ही चांदी के गहों पर यंत्र भी खुदे रहते हैं. अजमेर में श्वेताम्बर संप्रदाय के मूंतों के मंदिर में चांदी के ४ नघपद के गट्टे और करीब एक फुट लंये और उतने ही चौड़े चांदी के पत्र पर अधिमंडलयंत्र' सुवा हैवाही के बड़े मंदिर (खेतांबरी) में ही बीज' तथा 'सिद्धचक्र' यंत्रो के गट्टे भी रक्खे हुए है. . 'सांधिधिग्रहिक' उस राजमंत्री को कहते थे जिसको संधि मुलह) और 'विप्रह' (युख) का अधि. कार होता था. - 'अक्षपटलिक' राज्य के उस अधिकारी को कहते थे जिसके अधीम हिसावसंबंधी काम रहता था परंत कभी इस शब्द का प्रयोग राज्य के दफ्तर के अध्यक्ष के लिये भी होता था. अतएव संभव है कि वातर और हिसाब दोनों ही कहीं कहीं एक ही अधिकारी के अधीन रहते हो. . कश्मीर के राजा ताम्रपत्र तय्यार करने के लिये 'पट्टोपाध्याय' नामक अधिकारी रखते थे. यह अधिकारी भक्षपटलिक के अधीन रहता था ( कल्हणकत राजतरंगिणी, तरंग ५.लो. ३६७-१८). .. देखो. ऊपर पृ.१००, टिप्पस ३. दूतक कमी कभी राजकुमार, राजा का माई, कोई राज्याधिकारी आदि होते थे. कभी राजा स्वयं प्राझा देता था. राजपूताने में ई.स.की १४ वीं शताब्दी के पास पास से ताम्रपत्र राजस्थानी हिंदी में लिखे जाने लगे तो भी इतक का नाम रहता था (प्रत दुप). Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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