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________________ २०-सरीही लिपि केक. (हिपिपत्र के उत्तराईका द्वितीय सं). खरोष्ठी लिपि के अंक एक लिपिकी माई विदेशी है. भरपी और फारसी की नाई खरोष्ठी हिपि दाहिनी ओर से बाई और लिखी जाती है परंतु उसके अंक परपी और फारसीके अंकों की नाई गई और से दाहिमी मोर नहीं लिखे जाते किंतु दाहिनी ओर से बाई और लिखे जाते हैं जिसका कारण यही है कि अंक प्रावी और फारसीके अंकों की नई भारतीय अंकों से नहीं निकले किंतु सेमिरिक फिनिशियन (पा हमसे निकले हुए परमाक) को से निकले हुए प्रतीत होते हैं. ई. स. पूर्ष की तीसरी शताब्दी से भारतवर्ष में इन अंकों का कुछ पता लगता है. अशोक के शहबाजमड़ी के लेख की पहिली धर्माज्ञा में १और के लिये क्रमशः एक (1) और दो (1) खड़ी लकीरें, तीसरी में के लिये पांच (m) और १३वीं में ४ के लिये चार (1) खड़ी लकीरें मिलती हैं. ऐसे ही मशीक के मासेराके लेख की पहिली धर्माज्ञामें १और के लिये क्रमश: एक (1) और दो (1), और तीसरी में पांच के लिये पांच (1) खड़ी लकीरें खुदी हैं. इससे पाया जाता है कि उस समय हकतो तक के लियेशन कों का वही कम हो जो फिनिशिवम् में मिलता है, शोकके पीछे शक, पार्थिचन और कुशनशियों के समय के स्वरोष्ठी लेखों में ये अंक विशेष रूप से मिलते हैं. उनमें १, २, ३, ४, १०, २० और १०० के लिये पृथक पृथक् चिक है (देखो, लिपिपत्र ७६ में खरोष्टी अंक). इन्हीं ७चिकों से 8 तक के अंक लिखे जाते थे. इन मंकों में से 8 तक के लिये यह क्रम था कि ५ के लिये ४ के अंक की बाई मोर १७६ के लिये ४और २,७ के लिये ४ और ३८ के लिये दो बार ४; और के लिये ४,४ चौर १ लिखे जाते थे. ११ से १६सक के लिये १०कीबाईभोर उपयुक्त क्रम से १सेककेक लिखे जाते. २० से २६ के लिये २० की पाई भोर १ से तक के और ३० के लिये २० और १० लिखे जाते थे... १से 8 तक के बंक २०, १० और १ से हलक के अंकों को मिलाने से बनते थे, जैसे कि ७४ के लिये २०, २०, २०, १०और ४और E के लिये २०, २०, २०, २०,१०,४,४और १. - १००के लिये वक्त चित्र के पूर्व १ का अंक रखा जाता था. २०० के लिये १०० के पूर्व १ का और ३०० के लिये ३ का कंक लिखा जाता था. ४०० के लिये १०० के पूर्व ४काधिक लिया जाता था या चार खड़ी लकीरें बनाई जाती थी इसका कुछ पतानहीं चलतापयोंकि ३७४ के भागे का कोई अंक अब तक नहीं मिला अशोक के पीछे के उपर्युक्त ७षिकों में से १, २और ३ के लिये क्रमशः १,२और ई वडीलकीरें है जो फिनिशियन क्रम से ही है.४ के अंक का पिक है जोई.स. पूर्व के सेमिटिक लिपि के किसी लेख में नहीं मिलमा.संभव है किग्राहली के ४के अंक (+)कोही टेडा लिखने से यह चिक बना हो.१०का चित्र फिनिशिमन् के १०के माई चिक को खालिखने से बना हो ऐसा प्रतीत होता है (देखो, ऊपर पृ.११३ में दिया मामका). उसी (फिनिशिन) चिम से पल्यारावालका एवं सीमा के लेख का उक्त अंक काधिक बना है, २० का चि फिमिशिमन अंकों में मिलने पाले २० के अंक के ४ चिजों में से तीसरा है. .. म संवत् बाले मेलो के लिये देखो. ऊपर पृ. १२, टिप्पण और पृ. ३०, टिप्पण १. Ano! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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