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कुटिल लिपि.
लिखा है. कुदारकोट के लेख में हलंत का चिझ ऊपर से तथा वर्तमान चिक के समान नीचे से भी पनाया है. कोटा के लेख में 'अ(पहिला) वर्तमान नागरी 'अ' से बहुत कुछ मिलता हुआ है और 'त्' को चलती कलम से लिख कर हलंत के चिक को मूल अक्षर से मिला दिया है जिसमे उसका रूप कुदारकोट के लेख के 'त्' से भिन्न प्रतीत होता है. लिपिपत्र २१वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
ओं नमः शिवाय ओं नमः स्स(स)कालसंसारसागरोतारहेतवे । तमोगाभिसंपातहस्तालंबाय शम्भवे ॥ श्वेतहौपानुकाराx कचिदपरिमितैरिन्दु पादैः पतद्विनित्यस्यै
लिपिपत्र २२ बां. यह लिपिपल चंबा के राजा मेरुवो के ५ लेखों से तय्यार किया है. उक्त लेग्वां में से गंगाव का लेख शिला पर खुदा है और बाकी के पित्तल की मूर्तियों पर'. मूर्तियों पर के लेखों से उद्धृत किये हुए अक्षरों में कितने एक अक्षरों के एक से अधिक रूप मिलते हैं जिसका कारण यह है कि ये सब लेख एकही लेखक के हाथ से लिवे नहीं गये और कुछ अक्षर कलम को उठाये बिना लिग्ने हों ऐसा प्रतीत होता है. 'न' का पहिला रूप नागरी के'1' से मिलता हुआ है, उक्त अक्षर का ऐसा रूप अन्यत्र भी मिलता है (देखो लिपिपत्र २२ में बुचकला के लेख के अक्षरों में), 'न' के तीसरे रूप में बीच की ग्रंथि उलटी लगाई है, 'रका दूसरा रूप उलटा लिखा गया है, 'य'को 'व के समान लिखा है और रेफ को पंक्ति के ऊपर नहीं किंतु पंक्ति की सीध में लिखा है. लिपिपत्र की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर
ओं प्रासाद मेरुसहशं हिमवन्समृभिः कृत्वा स्वयं प्रपरकर्म शुभैरनेकैः तमन्द्रशाल रपिसं मवमाभमामा प्राग्नौयकैर्विविधमण्डपनैः कचिवैः । तस्याग्रतो दृषभ पौ". नकपोलकायः संश्लिष्टवक्षककुदोबतदेवयानः श्रीमेरुवर्मचतुरोदधिकौतिरेषाः मासायिनः सततमात्मफ
लिपिपत्र २३ वा. यह लिपिपल प्रतिहार राजा नागभट के समय के बुचकला के लेख, प्रतिहार बाउक के जोधपुर के लेख तथा प्रतिहार करकुक के घटिनाले के लेख से तय्यार किया गया है. बुचकला के लेख में 'न' नागरी के 'म से मिलता हुआ है, 'ह' की आकृति नागरी के 'र' के समान है और 'प्त में 'त' उलटा जोड़ा है. जोधपुर के लेख के अधिकतर भक्षर नागरी के समान हो गये हैं.
है. ये मल पंक्तियां कोटा के लेख से है (.; जि. २६, पृ. ५-के पास का प्लेट). २. फो .. स्टे: प्लेट ११.
। फो।एँ.चं. स्टेप्लेट १०. ४. ये मूल पंनियां नंदी की मूर्ति के लेख से उद्धत की गई हैं ( फोः ५. चं स्टे प्लेट १०). इनमें अशुद्धियां बहुल है इस लिये उन्हें मूल के साथ ( ) बिल के भीतर नहीं किंतु टिप्पणों में शुद्ध किया है.
t. "साद. "धन्मूर्णिन. . "शाला. . "चिता. . नयनाभिरामा. १०. विधमण्डपर्ने का
२. 'एमा पी' १९. "वक्षाककुचनदेवयानं. १७. चतुरुदधिकीतिरेषा.
१४. मातापित्रो. .. जि.६ पृ.२०० के पास का प्लेट. १५. राजपूतामा पुजिनम् । अजमेर ) में रक्खे हुऐ मूल लेख की अपने हाथ से तय्यार कर हुई छाप से ... प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता जोधपुर के मुन्शी देवीप्रसाद की भेजी हुई छाप से.
Aho! Shrutgyanam