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अध्याय - ६
सकषायाकषाययोः साम्परायिकर्यापथयोः ॥४॥
[ सकषायस्य साम्परायिकस्य ] कषायसहित जीव के संसार के कारणरूप कर्म का आस्रव होता है और [अकषायस्य ईर्यापथस्य] कषायरहित जीव के स्थितिरहित कर्म का आस्रव होता है।
(There are two kinds of influx, namely) that of persons with passions, which extends transmigration, and that of persons free from passions, which prevents or shortens it.
इन्द्रियकषायाव्रतक्रियाः पञ्चचतुःपञ्चपञ्चविंशतिसंख्याः
पूर्वस्य भेदाः ॥५॥
[इन्द्रियाणि पश्च] स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियाँ, [कषायाः चतुः] क्रोधादि चार कषाय, [अव्रतानि पञ्च] हिंसा इत्यादि पाँच अव्रत और [ क्रियाः पञ्चविंशति ] सम्यक्त्व आदि पच्चीस प्रकार की क्रियायें [ संख्याः भेदाः] इस प्रकार कुल 39 भेद [ पूर्वस्य ] पहले (साम्परायिक) आस्रव के हैं, अर्थात् इन सर्व भेदों के द्वारा साम्परायिक आस्रव होता है।
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