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अध्याय - १
क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥२२॥ [क्षयोपशमनिमित्तः] क्षयोपशमनैमित्तक अवधिज्ञान [षडविकल्पः ] अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित - ऐसे छह भेदवाला है, और वह [शेषाणाम् ] मनुष्य तथा तिर्यंचों के होता है।
Clairvoyance from destruction-cum-subsidence (i.e. arising on the lifting of the veil) is of six kinds. It is acquired by the rest (namely human beings and animals).
ऋजुविपुलमती मनःपर्ययः ॥२३॥
[ मनःपर्ययः ] मनःपर्ययज्ञान [ऋजुमतिविपुलमतिः] ऋजुमति और विपुलमति दो प्रकार का है।
Ķjumati and vipulmati are the two kinds of telepathy (manahparyaya).
विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः ॥२४॥ [विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां ] परिणामों की विशुद्धि और अप्रतिपात अर्थात् केवलज्ञान होने से पूर्व न छूटना [तद्विशेषः] इन दो बातों से ऋजुमति और विपुलमति ज्ञान में विशेषता (अन्तर) है।
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