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अध्याय - १०
अथ दशमोऽध्यायः
Liberation
मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥१॥ [ मोहक्षयात् ] मोह का क्षय होने से (अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त क्षीणकषाय नामक गुणस्थान प्राप्त करने के बाद) [ ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयात् च] और ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय इन तीन कर्मों का एक साथ क्षय होने से [ केवलम् ] केवलज्ञान उत्पन्न होता है।
Omniscience (perfect knowledge) is attained on the destruction of deluding karmas, and on the destruction of knowledge- and perception-covering karmas and obstructive karmas.
बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥ [बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां] बन्ध के कारणों (मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग) का अभाव तथा निर्जरा के द्वारा [ कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः] समस्त कर्मों का अत्यन्त नाश हो जाना सो मोक्ष है।
Owing to the absence of the cause of bondage and with the functioning of the dissociation of karmas,
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