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अध्याय -९
[पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि] पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवर्ति - ये शुक्लध्यान के चार भेद हैं।
(The four types of pure concentration are) that of different, scriptural, shifting, that of the single scriptural, that of subtle activity, and that of complete destruction of activity.
त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ॥४०॥ [त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ] ऊपर कहे गये चार प्रकार के शुक्लध्यान अनुक्रम से तीन योग वाले, एक योग वाले, मात्र काययोग वाले और अयोगी जीवों के होते हैं।
Of three activities, one activity, bodily activity, and no activity.
एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे ॥४१॥ [ एकाश्रये ] एक (-परिपूर्ण) श्रुतज्ञानी के आश्रय से रहने वाले [ पूर्वे ] शुक्लध्यान के पहले दो भेद [ सवितर्कवीचारे ] वितर्क और वीचार सहित हैं।
Prathaktvavitarka, ekatvavitarka, sūkşmakriyāpratipāti and vyuparatakriyānivarti are the Sanskrit names of the four types of pure concentration.
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