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अध्याय - ८
अथ अष्टमोऽध्यायः Bondage of Karma
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥१॥ [मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः ] मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग - ये पाँच [बंधहेतवः] बन्ध के कारण हैं।
Wrong belief, non-abstinence, negligence, passions, and activities are the causes of bondage.
सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते स
बन्धः ॥२॥ [ जीवः सकषायत्वात् ] जीव कषायसहित होने से [कर्मणः योग्यान्पुद्गलान् ] कर्म के योग्य पुद्गल परमाणुओं को [आदत्ते ] ग्रहण करता है [ स बन्धः] वह बन्ध है। The individual self attracts particles of matter which are fit to turn into karma, as the self is actuated by passions. This is bondage.
प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधयः ॥३॥ [तत् ] उस बन्ध के [ प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशाः] प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध [विधयः] ये चार भेद हैं।
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