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अध्याय - ७
मैथुनमब्रह्म ॥ १६ ॥
[ मैथुनमब्रह्म ] जो मैथुन है सो अब्रह्म अर्थात् कुशील है।
Copulation is unchastity.
मूर्च्छा परिग्रहः ॥१७॥
[ मूर्च्छा परिग्रहः ] जो मूर्च्छा है सो परिग्रह है।
Infatuation is attachment to possessions.
निश्शल्यो व्रती ॥१८॥
[ व्रती ] व्रती जीव [ निःशल्य: ] शल्य रहित ही होता है।
The votary is free from stings.
अगार्यनगारश्च ॥ १९ ॥
[ अगारी ] अगारी अर्थात् सागार (गृहस्थ ) [ अनगारः च ] और अनगार (गृहत्यागी भावमुनि) इस प्रकार व्रती के दो भेद हैं।
नोट- निश्चय सम्यग्दर्शन- ज्ञानपूर्वक महाव्रतों को पालने वाले मुनि अनगारी कहलाते हैं और देशव्रत को पालने वाले श्रावक सागारी कहलाते हैं।
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