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________________ प्रस्तावना २२. हेत्वाभास नैयायिक' हेतुके पाँच रूप मानते हैं । अतः उन्होंने एक एक रूपके अभावमें पाँच हेत्वाभास माने हैं। वैशेषिक' और बौद्ध हेतुके तीन रूप स्वीकार करते हैं। इसलिए उन्होंने तीन हेत्वाभास माने हैं। पक्षधर्मत्वके अभावसे प्रसिद्ध, सपक्षसत्त्वके अभावसे विरुद्ध और विपक्षासत्वके अभावसे सन्दिग्ध अथवा अनैकान्तिक ये तीन हेत्वाभास वर्णित किये हैं। सांख्य भी चूंकि हेतुको त्रैरूप्य मानते हैं। अतः उन्होंने भी मुख्यतया तीन ही हेत्वाभास स्वीकृत किये हैं। प्रशस्तपादने एक अनध्यवसित नामके चौथे हेत्वाभासका भी निर्देश किया है जो नया ही मालूम होता है और प्रशस्तपादका स्वोपज्ञ है क्योंकि वह न तो न्यायदर्शनके पाँच हेत्वाभासोंमें है, न कणादकथित तीन हेत्वाभासोंमें है और न उनके पूर्ववर्ती किसी सांख्य या बौद्ध विद्वान्ने बतलाया है । हाँ, दिग्नागने अनैकान्तिक हेत्वाभासके भेदोंमें एक विरुद्धाव्यभिचारी जरूर बतलाया है जिसके न्याय १ "सव्यभिचारविरुद्धप्रकरणसमसाध्यसमातीतकाला हेत्वाभासाः।"न्यायसू० १-२-४ । "हेतोः पञ्च लक्षणानि पक्षधर्मत्वादीनि उक्तानि । तेषामेकैकापाये पंच हेत्वाभासा भवन्ति । असिद्ध-विरुद्ध-अनैकान्तिक-कालात्ययापदिष्ट-प्रकरणसमाः ।"-न्यायकलिका पृ० १४ । न्यायमं० पृ० १०१ । २ "अप्रसिद्धोऽनपदेशोऽसन् सन्दिग्धश्चानपदेशः ।"-वैशे० सू० ३-१-१५ । “यदनुमेयेन सम्बद्धं प्रसिद्धं च तदन्विते । तदभावे च नास्त्येव तल्लिङ्गमनुमापकम् ॥ विपरीतमतो यत् स्यादेकेन द्वितयेन वा विरुद्धासिद्धसन्दिग्धमलिङ्ग काश्यपोऽब्रवीत् ॥”-प्रशस्त० पृ० १०० । ३ "असिद्धानैकान्तिकविरुद्धा हेत्वाभासाः ।”—न्यायप्र० पृ० ३। ४ "अन्ये हेत्वाभासाः चतुर्दश असिद्धानकान्तिकविरुद्धादयः ।”—माठरवृ० ५। ५ “एतेनासिद्धविरुद्धसन्दिग्धानध्यवसितवचनानामनपदेशत्वसुक्त भवति ।”प्रशस्तपा० भा० पृ० ११६ । ६ देखो, न्यायप्रवेश पृ० ३ ।
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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