SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्याय-दीपिका अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् । नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ।। अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र किं तत्र पञ्चभिः । नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र किं तत्र पञ्चभिः॥ इनमें पिछली कारिका आचार्य विद्यानन्दकी स्वोपज्ञ है और वह प्रमाणपरीक्षामें उपलब्ध है। परन्तु पहली कारिका किसकी है ? इस सम्बन्धमें यहाँ कुछ विचार किया जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि यह कारिका त्रैरूप्य खण्डनके लिए रची गई है और वह बड़े महत्वकी है। विद्यानन्दने अपनी उपर्युक्त कारिका भी इसीके आधार पर पाँचरूप्यका खण्डन करनेके लिए बनाई है। इस कारिकाके कर्तृत्वसम्बन्धमें ग्रन्थकारोंका मतभेद है। सिद्धिविनिश्चयटीकाके कर्ता अनन्तवीर्यने उसका उद्गम सीमन्धरस्वामीसे बतलाया है। प्रभाचन्द्र और वादिराज' कहते हैं कि उक्त कारिका सीमन्धरस्वामीके समवशरणसे लाकर पद्मावतीदेवीने पात्रकेशरी अथवा पात्रस्वामीके लिए समर्पित की थी। विद्यानन्द उसे वात्तिककारकी कहते हैं । वादिदेवसूरि और शांतिरक्षित पात्रस्वामीकी प्रकट करते हैं । इस तरह इस कारिका के कर्तृत्वका अनिर्णय बहुत पुरातन है। देखना यह है कि उसका कर्ता है कौन ? उपर्युक्त सभी ग्रन्थकार ईसाकी आठवीं शताब्दीसे ११वीं शताब्दीके भीतर हैं और शान्तरक्षित (७०५-७६३. ई०) सबमें प्राचीन हैं। शान्तरक्षितने पात्रस्वामीके नामसे और भी कितनी ही कारिकाओं तथा पदवाक्यादिकोंका उल्लेख करके उनका आलोचन किया है। इससे वह निश्चितरूपसे मालूम हो १ सिद्धिविनि० टी० पृ० ३००० । २ देखो, गद्यकथाकोशगत पात्रकेशरीकी कथा । ३ न्यायवि० वि० २-१५४ पृ. १७७ । ४ तत्त्वार्थश्लो० पृ० २०४ । ५ स्या० रत्ना० पृ० ५२१ । ६ तत्त्वसं० पृ० ४०६ ।।
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy