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________________ प्रस्तावना -:* : न्यायदीपिका और अभिनव धर्मभूषण किसी ग्रन्थ की प्रस्तावना या भूमिका लिखनेका उद्देश्य यह होता है कि उस ग्रन्थ और ग्रन्थकार एवं प्रासङ्गिक अन्याय विषयोंके सम्बन्धमें ज्ञातव्य बातों पर प्रकाश डाला जाय, जिससे दूसरे अनेक सम्भ्रान्त पाठकों को उस विषय की यथेष्ट जानकारी सहजमें प्राप्त हो सके। आज हम जिस ग्रन्थरत्नकी प्रस्तावना प्रस्तुत कर रहे हैं वह न्यायदीपिका' है । यद्यपि न्यायदीपिका के कई संस्करण निकल चुके हैं और प्रायः सभी जैन शिक्षा-संस्थाओं में उसका अरसे से पठन-पाठन के रूप में विशेष समादर हैं । किन्तु अभी तक हम ग्रन्थ और ग्रन्थकार के नामादि सामान्य परिचय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते हैं उनका ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक अविकल परिचय अब तक सुप्राप्त नहीं है। अतः न्यायदीपिका और अभिनव धर्मभूषणका यथासम्भव सप्रमाण पूरा परिचय कराना ही प्रस्तुत प्रस्तावनाका मुख्य लक्ष्य है । पहले न्यायदीपिका के विषयमें विचार किया जाता है। १. न्याय-दीपिका (क) जैन न्यायसाहित्य में न्यायदीपिका का स्थान और महत्त्व- श्री अभिनव धर्मभूषण यतिकी प्रस्तुत 'न्यायदीपिका' संक्षिप्त एवं अत्यन्त सुविशद और महत्वपूर्ण कृति है । इसे जैनन्यायकी प्रथमकोटिकी भी रचना कही जाय तो अनुपयुक्त न होगा; क्योंकि जैनन्यायके अभ्या
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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