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________________ २०२ न्याय-दीपिका AN owa विरुद्धादिक हेत्वाभासों में अन्यथानुपपत्ति का अभाव प्रकट ही है। क्योंकि स्पष्ट ही विरुद्ध, व्यभिचारी, बाधितविषय और सत्प्रतिपक्ष के अविनाभाव का निश्चय नहीं है। इसलिए जिस हेतु के अन्यथानपपन्नत्व का योग्य देश में निश्चय है वही सम्यक् हेतु है उससे भिन्न हेत्वाभास है, यह सिद्ध हो गया। दूसरे, 'गर्भ में स्थित मैत्री का पुत्र श्याम ( काला ) होना चाहिए, क्योंकि वह मैत्री का पुत्र है, अन्य मौजूद मैत्री के पुत्रों की तरह ।' यहाँ हेत्वाभास के स्थान में भी बौद्धों के त्रैरूप्य और नयायिकों के पाञ्चरूप्य हेतुलक्षण की अतिव्याप्ति है, इसलिए त्रैरूप्य और पाञ्चरूप्य हेतु का लक्षण नहीं है। इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है : __ मैत्री के मौजूद पाँच पुत्रों में कालेपन को देखकर मैत्री के गर्भस्थ पुत्र को भी-जो कि विवादग्रस्त है, पक्ष करके उसमें कालेपन को सिद्ध करने के लिए जो 'मैत्री का पुत्रपना' हेतु प्रयुक्त किया जाता है वह हेत्वाभास है—सम्यक् हेतु नहीं है, यह प्रसिद्ध ही है। क्योंकि उसमें गोरेपन की भी सम्भावना की जा सकती है। और वह सम्भावना 'कालेपन' के साथ 'मैत्री का पुत्रपना' की अन्यथानुपपत्ति ( अविनाभाव ) न होने से होती है। अन्यथानुपपत्ति का अभाव इसलिए है कि कालेपन के साथ मैत्री के पुत्रपने का न तो सहभाव । नियम है और न क्रमभाव नियम । जिस धर्म का जिस धर्म के साथ सहभाव नियम-एक साथ होने का स्वभाव होता है वह उसका ज्ञापक होता है। अर्थात्-वह उसे जनाता है। जैसे शिशपात्व का वृक्षत्व के साथ सहभाव नियम है, इसलिए शिशपात्व हेतु वृक्षत्व को जनाता है। और जिसका । जिसके साथ क्रमभाव नियम-क्रम से होने का स्वभाव होता है वह SINo
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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