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________________ १६० न्याय-दीपिका हैं' इत्यादि व्यपदेश होता है । तात्पर्य यह कि परार्थानुमान वाक्य परार्थानुमान ज्ञान के उत्पन्न करने में कारण होता है, अतः उसको उपचार से पराथानुमान माना गया है। __ परार्थानुमान की अङ्गसम्पत्ति और उसके अवयवों का 5 प्रतिपादन ___ इस परार्थानुमान के अङ्गों का कथन स्वार्थानुमान की तरह जानना चाहिए। अर्थात्-उसके भी धर्मी, साध्य और साधन के भेद से तीन अथवा पक्ष और हेतु के भेद से दो अङ्ग हैं। और परा नुमान में कारणीभूत वाक्य के दो अवयव हैं-१ प्रतिज्ञा और 10 २ हेतु। धर्म और धर्मी के समुदाय रूप पक्ष के कहने को प्रतिज्ञा कहते हैं। जैसे—'यह पर्वत अग्नि वाला है।' साध्य के अविनाभावी साधन के बोलने को हेतु कहते हैं। जैसे-धूम वाला अन्यथा हो नहीं सकता' अथवा 'अग्नि के होने से ही धूम वाला है।' इन दोनों हेतु-प्रयोगों में केवल कथन का भेद है। पहले हेतु-प्रयोग में तो 15 'धूम अग्नि के बिना नहीं हो सकता' इस तरह निषेधरूप से कथन किया है और दूसरे हेतु-प्रयोग में 'अग्नि के होने पर ही धूम होता है' इस तरह सद्भावरूप से प्रतिपादन किया है। अर्थ में भेद नहीं है । दोनों ही जगह अविनाभावी साधन का कथन समान है। इसलिए उन दोनों हेतुप्रयोगों में से किसी एक को ही बोलना चाहिए। 20 दोनों के प्रयोग करने में पुनरुक्ति पाती है। इस प्रकार पूर्वोक्त प्रतिज्ञा और इन दोनों हेतु-प्रयोगों में से कोई एक हेतु-प्रयोग, ये दो ही परार्थानुमान वाक्य के अवयव हैं—अङ्ग हैं; क्योंकि व्युत्पन्न (समझदार) श्रोता को प्रतिज्ञा और हेतु इन दो से ही अनुमिति अनुमान ज्ञान हो जाता है। 25 नैयायिकाभिमत पाँच अवयवों का निराकरण नैयायिक परार्थानुमान वाक्य के उपर्युक्त प्रतिज्ञा और हेतु
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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