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________________ अध्येताओं को भी उपयोगी और लाभप्रद सिद्ध हुआ है। इस दृष्टि से ग्रन्थ का द्वितीय संस्करण आवश्यक था। ___ इसके पुनः प्रकाशन से पूर्व वीरसेवामन्दिर के विद्वान् पण्डित परमानन्द जी शास्त्री ने इसे मेरे पास पुनरावलोकन के लिए भेज दिया था, पर मैं अपने शोध-कार्यमें व्यस्त रहनेसे उसे आपाततः न देख सका । परन्तु हाँ, वीरसेवामन्दिर के ही वरिष्ठ विद्वान् पण्डित बालचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री ने अवश्य उसे परिश्रम पूर्वक देखा है और मूल तथा अनुवाद के प्रूफ-शोधन भी करने की कृपा की है । इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। साथ ही वीरसेवामन्दिर के संचालकों तथा पण्डित परमानन्द जी शास्त्री का भी धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने इसको पुनः प्रकाशन करके और प्रस्तावना आदि का प्रूफरीडिंग करके अध्येताओं को लाभान्वित किया है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय दरबारीलाल जैन, कोठिया वाराणसी (न्यायाचार्य, शास्त्राचार्य एम. ए.) २६ जून १६६८.
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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