SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्याय-दीपिका केवल एक मन है। इन दोनों के निमित्त से होनेवाला यह अवग्रहादिरूप ज्ञान लोकव्यवहार में 'प्रत्यक्ष' प्रसिद्ध है। इसलिये यह सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष कहा जाता है। परीक्षामुख में भी कहा है-'इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाले एक देश स्पष्ट ज्ञान 5 को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं।" और यह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अमुख्य प्रत्यक्ष है—गौण रूपसे प्रत्यक्ष है, क्योंकि उपचार से सिद्ध होता है। वास्तव में तो परोक्ष ही है। कारण वह मतिज्ञान है और मतिज्ञान परोक्ष है। शङ्का-मतिज्ञान परोक्ष कैसे है ? 10 समाधान—“पाद्ये परोक्षम्" [ त० सू० १-११ ] ऐसा सूत्र है—ागम का वचन है। सूत्र का अर्थ यह है कि प्रथम के दो ज्ञान –मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं। यहाँ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष को जो उपचार से प्रत्यक्ष कहा गया है उस उपचार में निमित्त 'एकदेश स्पष्टता' है। अर्थात्-इन्द्रिय और अनिन्द्रिय जन्य ज्ञान 1 15 कुछ स्पष्ट होता है, इसलिये उसे प्रत्यक्ष कहा गया है। इस सम्बन्ध में और अधिक विस्तार की आवश्यकता नहीं है। इतना विवेचन पर्याप्त है। पारमार्थिक प्रत्यक्ष का लक्षण और उसके भेदों का कथन-ौ सम्पूर्णरूप से स्पष्ट ज्ञान को पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं। जो विव 20 ज्ञान समस्त प्रकार से निर्मल है वह पारमार्थिक प्रत्यक्षा है। उसी को मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं। उसके दो भेद हैं-एक सकल प्रत्यक्ष और दूसरा विकल(चूंकि प्रत्यक्ष। उनमें से कुछ पदार्थों को विषय करने वाला ज्ञान विकल , इर पारमार्थिक है। उसके भी दो भेद हैं-१ अवधिज्ञान और २ मनःप 25 मनःपर्ययज्ञान । अवधिज्ञानावरण और वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोप- जाते। IFE TO
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy