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पहला प्रकाश
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लोगोंका यह भ्रम हैं कि बौद्धादिकोंका भी माना हुआ प्रमाणका लक्षण वास्तविक लक्षण है। उनके उपकार के लिए यहाँ उनके प्रमाणलक्षणोंकी परीक्षा की जाती है। बौद्धोंके प्रमाण-लक्षणकी परीक्षा
'जो ज्ञान अविसंवादी है-विसंवादरहित है वह प्रमाण हैं' 5 ऐसा बौद्धोंका कहना है, परन्तु उनका यह कहना ठीक नहीं है। इसमें असम्भव दोष आता है। वह इस प्रकारसे है-बौद्धों ने प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो ही प्रमाण माने हैं । न्यायबिन्दुमें कहा है "सम्यग्ज्ञान (प्रमाण) के दो भेद हैं-१ प्रत्यक्ष और २ अनुमान ।" उनमें न प्रत्यक्ष में अविसंवादीपना सम्भव है, क्योंकि वह 10 निर्विकल्पक होनेसे अपने विषयका निश्चायक न होनेके कारण संशयादिरूप समारोपका निराकरण नहीं कर सकता है। और न अनुमानमें भी अविसंवादीपना सम्भव है, क्योंकि उनके मतके अनुसार वह भी अवास्तविक सामान्यको विषय करनेवाला है। इस तरह बौद्धोंका वह प्रमाणका लक्षण असम्भव दोषसे दूषित होनेसे सम्यक् 15 लक्षण नहीं है। भाटोंके प्रमाण-लक्षणकी परीक्षाहि 'जो पहले नहीं जाने हुए यथार्थ अर्थका निश्चय करानेवाला है वह प्रमाण है' ऐसा भाट्ट-मीमांसकों की मान्यता है; किन्तु उनका भी यह लक्षण अव्याप्ति दोषसे दूषित है। क्योंकि 20 उन्हींके द्वारा प्रमाणरूपमें माने हुए धारावाहिकज्ञान अपूर्वार्थग्राही नहीं हैं। यदि यह आशंका की जाय कि धारावाहिक ज्ञान अगले अगले क्षणसे सहित अर्थको विषय करते हैं इसलिए अपूवार्थविषयक ही हैं। तो यह आशंका करना भी ठीक नहीं है। कारण, क्षण अत्यन्त सूक्ष्म हैं उनको लक्षित करना-जानना 25