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________________ पहला प्रकाश समाधान-ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि यह बात तो विपरीत पक्षमें भी समान है। हम यह कह सकते हैं कि 'अप्रमाणता तो स्वतः होती है और प्रमाणता परसे होती है। इसलिए अप्रमाणताकी तरह प्रमाणता भी परसे ही उत्पन्न होती है। जिस प्रकार वस्त्रसामान्यकी सामग्री लास्त्र वस्त्रमें कारण नहीं होती-उसके लिए दूसरी 5 ही सामग्री आवश्यक होती है उसी प्रकार ज्ञानसामान्यकी सामग्री प्रमाणमात्रमें कारण नहीं हो सकती है। क्योंकि दो भिन्न कार्थ अवश्य ही भिन्न भिन्न कारणोंसे होते हैं । शङ्का-प्रामाण्यका निश्चय कैसे होता है ? if समाधान-अभ्यस्त विषयमें तो स्वतः होता है और अनभ्यस्त 10 विषयमें परसे होता है। तात्पर्य यह है कि प्रामाण्यकी उत्पत्ति तो सर्वत्र परसे ही होती है, किन्तु प्रामाण्यका निश्चय परिचित विषयमें स्वतः और अपरिचित विषयमें परतः होता है। - शङ्का- अभ्यस्त विषय क्या है ? और अनभ्यस्त विषय क्या है ? क. समाधान—परिचित-कई बार जाने हुए अपने गाँवके तालाबका 15 जल वगैरह अभ्यस्त विषय हैं और अपरिचित नहीं जाने हुए दूसरे गाँवके तालाबका जल वगैरह अनभ्यस्त विषय हैं । fo शंका-स्वतः क्या है और परतः क्या है ! f समाधान-ज्ञानका निश्चय करानेवाले कारणोंके द्वारा ही प्रामाण्यका निश्चय होना 'स्वतः' है और उससे भिन्न कारणोंसे 20 होना 'परतः' है। उनमेंसे अभ्यस्त विषयमें 'जल है' इस प्रकार ज्ञान होनेपर ज्ञानस्वरूपके निश्चयके समयमें ही ज्ञानगत प्रामाणताका भी निश्चय अवश्य हो जाता है। नहीं तो दूसरे ही क्षणमें जलमें सन्देहरहित प्रवृत्ति नहीं होती, किन्तु जलज्ञानके बाद ही सन्देहरहित प्रवृत्ति 25 अवश्य होती है। अतः अभ्यासदशामें तो प्रामाण्यका निश्चय
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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