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श्री-समन्तभद्राय नमः श्रीमदभिनव-धर्मभूषण-पति-विरचित
न्याय-दीपिका
का
हिन्दी अनुवाद
पहला प्रकाश
मंगलाचरण और ग्रन्थ-प्रतिज्ञाग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगल करना प्राचीन भारतीय प्रास्तिक परम्परा है । उसके अनेक प्रयोजन और हेतु माने जाते हैं। १ निर्विघ्नशास्त्र-परि-समाप्ति २ शिष्टाचार-परिपालन ३ नास्तिकता-परिहार ४ कृतज्ञता-प्रकाशन और ५ शिष्य-शिक्षा। इन प्रयोजनों को संग्रह 5 करने वाला निम्नलिखित पद्य है, जिसे पण्डित आशाधरजी ने अपने अनगारधर्मामृत की टीका में उद्धृत किया है :
नास्तिकत्वपरीहारः शिष्टाचारप्रपालनम् । पुण्यावाप्तिश्च निर्विघ्नं शास्त्रादावाप्तसंस्तवात् ।।