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प्रस्तावना
मूलसंघ-बलात्कारगण कीर्ति ( वनवासिके )
देवेन्द्र विशालकीत्ति
तीक्षक
शुभकीत्तिदेव भट्टारक
धर्मभूषणदेव I
अमरकीत्ति प्राचार्य
धर्मभूषणदेव II
प्रकार
वर्द्धमानस्वामी र्वतके र जो इस दोनों लेखोंको मिलाकर ध्यानसे पढ़नेसे विदित होता है कि रा दी प्रथम धर्मभूषण, अमरकीर्ति आचार्य धर्मभूषण द्वितीय और वर्द्धमान
ये चार विद्वान् सम्भवतः दोनोंके एक ही हैं । यदि मेरी यह सम्भावना ठीक है तो यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है वह यह कि विन्ध्यगिरिके लेख (शक १२६५ ) में वर्द्धमानका तो उल्लेख है पर उनके शिष्य (पट्टके
उत्तराधिकारी) तृतीय धर्मभूषणका उल्लेख नहीं है । जिससे जान पड़ता लका- है कि उस समय तक तृतीय धर्मभूषण वर्द्ध मानके पट्टाधिकारी नहीं बन भज-सके होंगे और इसलिये उक्त शिलालेखमें उनका उल्लेख नहीं पाया। कल
धर्मभूषण-देवानां ..... 'तत्त्वार्थ-वाद्धिवर्द्धमान-हिमांशुना....."वर्द्धमानभारकदेवाः
स्वामिना कारितोऽहं [यं] आचार्यणां ... स्वस्तिशक-वर्ष १२६५ परि
धावि संवत्सर वैशाख-शुद्ध ३ बुधवारे ।"-उद्धृत जैनशि०पृ०२२३ से। ..... १ प्रो० हीरालालजीने इनकी निषद्या बनवाई जानेका समय शक धारक- सम्वत् १२६५ दिया है । देखो, शिलालेखसं० पृ० १३६ ।
प्र