________________
२४
न्याय-दीपिका
टीका कृतियाँ हैं । धर्मभूषणने न्यायदीपिका पृ० ३० पर तो इस ग्रंथका केवल नामोल्लेख और ५४ पर नामोल्लेखके साथ एक वाक्यको भी उद्धृत किया है।
प्रमाण-निर्णय-न्यायविनिश्चयविवरणटीकाके कर्ता आ० वादिराजसूरिका यह स्वतन्त्र तार्किक प्रकरण ग्रंथ है। इसमें प्रमाणलक्षणनिर्णय, प्रत्यक्षनिर्णय, परोक्षनिर्णय और आगमनिर्णय ये चार निर्णय (परिच्छेद) हैं, जिनके नामोंसे ही ग्रन्थका प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट मालूम हो जाता है । न्या० दी० पृ०११ पर इस ग्रन्थके नामोल्लेखके साथ एक वाक्यको उद्धृत किया है।
कारूण्यकलिका--यह सन्दिग्ध ग्रन्थ है । न्यायदीपिकाकारने पृ० १११ पर इस ग्रन्थका निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है
_ 'प्रपञ्चितमेतदुपाधिनिराकरणं कारुण्कलिकायामिति विरम्यते' परन्तु बहुत प्रयत्न करनेपर भी हम यह निर्णय नहीं कर सके कि यह ग्रन्थ जैनरचना है या जैनेतर । अथवा स्वयं ग्रन्थकारकी ही न्यायदीपिकाके अलावा यह अन्य दूसरी रचना है । क्योंकि अब तकके मुद्रित जैन और जैनेतर ग्रन्थोंकी प्राप्त सूचियोंमें भी यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता । अतः ऐसा मालूम होता है कि यह या तो नष्ट हो चुका है या किसी लायब्रेरीमें असुरक्षित रूपमें पड़ा है। यदि नष्ट नहीं हया और किसी लायब्रेरीमें है तो इसकी खोज होकर प्रकाशमें आना चाहिए। यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अच्छा ग्रन्थ मालूम होता है । न्यायदीपिकाकारके उल्लेखसे विदित होता है कि उसमें विस्तारसे उपाधिका निराकरण किया गया है। सम्भव है गदाधरके 'उपाधिवाद' ग्रन्थका भी इसमें खण्डन हो।
स्वामीसमन्तभद्र-ये वीरशासनके प्रभावक, सम्प्रसारक और खास युगके प्रवर्तक महान् आचार्य हुये हैं सुप्रसिद्ध तार्किक भट्टाकलङ्कदेवने इन्हें कलिकालमें स्याद्वादरूपी पुण्योदधिके तीर्थका प्रभावक बतलाया