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________________ प्रस्तावना ७१ इतना जरूर मालूम हो जाता है कि वे अच्छे ग्रन्थकार और प्रभावक विद्वान् हुए हैं । न्यायदीपिका पू० १२४ पर इनके नामके उल्लेखपूर्वक इनके किसी ग्रन्थका 'न शास्त्रमसद्द्रव्येष्वर्थवत्' वाक्य उद्धृत किया गया है । अब जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकारोंका संक्षिप्त परिचय दिया जाता है । धर्मभूषणने निम्न जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकारोंका उल्लेख किया है । (क) ग्रन्थ - १ तत्त्वार्थसूत्र, २ प्राप्तमीमांसा, ३ महाभाष्य, ४ जैनेन्द्रव्याकरण, ५ श्राप्तमीमांसाविवरण ६ राजवातिक और राजवातिकभाष्य, ७ न्यायविनिश्चय, ८ परीक्षा - मुख, ६ तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक तथा भाष्य, १० प्रमाण परीक्षा, ११ पत्र - परीक्षा, १२ प्रमेयकमलमार्त्तण्ड और १३ प्रमाणनिर्णय । (ख) ग्रन्थकार - १ स्वामीसमन्तभद्र, २ प्रकलङ्कदेव, ३ कुमारनन्दि, ४ माणिक्यनन्दि और ५ स्याद्वादविद्यापति ( वादिराज ) । १. तत्त्वार्थ सूत्र - यह आचार्य उमास्वाति अथवा उमास्वामीकी अमर रचना है। जो थोड़ेसे पाठभेदके साथ जैनपरम्पराके दोनों ही दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायोंमें समानरूपसे मान्य हैं और दोनों ही सम्प्रदायोंके विद्वानोंने इसपर अनेक बड़ी बड़ी टीकाएँ लिखी हैं । उनमें ग्रा० पूज्यपादकी तत्वार्थवृत्ति ( सर्वार्थसिद्धि ), अकलंकदेवका तत्वार्थवार्तिक, विद्यानन्दका तत्वार्थश्लोकवार्त्तिक, श्रुतसागरसूरिकी तत्वार्थवृत्ति और श्वेताम्बर पपम्परामें प्रसिद्ध तत्वार्थभास ये पाँच टीकाएँ तो तत्वार्थसूत्र की विशाल, विशिष्ट और महत्वपूर्ण व्याख्याएँ हैं । प्राचार्य महोदय ने इस छोटीसी दशाध्यायात्मक अनूठी कृतिमें समस्त जैन तत्वज्ञानको संक्षेपमें 'गागरमें सागर की तरह भरकर अपने विशाल और सूक्ष्म ज्ञानभण्डारका परिचय दिया है । यही कारण है कि जैन परम्परामें तत्त्वार्थसूत्रका बहुत बड़ा महत्त्व है और उसका वही स्थान है जो हिन्दूसम्प्रदाय में गीताका है । इस ग्रन्थरत्नके रचयिता प्रा० उमास्वाति विक्रमकी
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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