SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरातार्जुनीयम् श०-उदारकीतः = विशाल कीर्ति (यश),वाले, अति यशस्वी, महा यशस्वी (महान् यश वाले)। दयावतः = दयालु (कृपाल), दया ( करुणा) से युक्त । अभिरक्षया = रक्षा से, रक्षा के द्वारा। प्रशान्तबाधं = शान्त (प्रशान्त) हो गई हैं बाधायें जिसमें ऐसे, शान्त हो गई बाधा वाले, निर्विघ्न, उपद्रवरहित | उदयं = अभ्युदय (उन्नति, वृद्धि ) को । दिशतः = सम्पादित (सम्पन्न, सम्पादन) करते हुए। वसूपमानस्य % कुबेर (वसु) के तुल्य (नपुंसकलिङ्ग वसुशब्द का अर्थ 'धन' और पुंलिङ्ग वसुशब्द का अर्थ 'कुबेर' होता है)। अस्य = इस (दुर्योधन ) के। गुणः = ( दया, दान, वीरता इत्यादि) गुणों के द्वारा । उपस्नुता = द्रवीभूत, द्रवित हुई । मेदिनी = पृथ्वी । स्वयं = अपने आप । वसूनि = धनों को । प्रदुग्धे = दुहती है, प्रदान करती है, ( उत्पन्न कर रही है)। अनु०-अति यशस्वी, दयालु, सुरक्षा के द्वारा उपद्रवरहित अभ्युदय (उन्नति) को सम्पादित करते हुए तथा (धन के अधिपति) कुबेर के सदृश इस. (दुर्योधन) के गुणों से द्रवीभूता पृथिवी (नवप्रसूता गौ की भाँति) (इस दुर्योधन के लिए.) स्वयं ही धनों को दुह रही है ( उत्पन्न कर रही है)। व्या०-प्रजापालनतत्परः एवं सद्गुणसमन्वित दुर्योधनः सततं स्वकीयराज्यस्य समुन्नति सम्पादयतीति प्रतिपादितमस्मिन् श्लोके । महायशस्वी एवं दयालुः सः दुर्योधनः निरन्तरं प्रजानां रक्षणेन स्वकीयराज्यस्य अभ्युदयं सम्पादयति । यथा केनचित् विदग्धेन नवप्रसूता रक्षिता च गौः स्वयं प्रदुग्धे तद्वत् कुबेरोपमस्य दुर्योधनस्य दयादाक्षिण्यादिभिः गुणैः प्रसन्ना सती पृथिवी स्वयमेव अस्मै धनानि प्रददाति । स०-उदारा की तैः यस्य सः उदारकीर्तिः तस्य (बहु०)। प्रशान्ता बाधा यस्मिन् तत् प्रशान्तबाधम् ( बहु०) अथवा प्रशान्ता बाधा येन सः प्रशान्तबाधः तं प्रशान्तबाधम् (बहु०)। वसुः उपमानम् यस्य स: वसूपमानः तस्य (बहु०)। व्या. दयावतः-दया+मतुप ( वतुप)+ ङस् । दया विद्यते अस्येति दयावान् तस्य । दिशतः-दिश् + लट शतृ+ षष्ठी एकवचन । उपस्नुता-उप+ स्नु+त+टाप । प्रदुग्धे-प्र+दुह, + लट, अन्यपुरुष एकवचन ।
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy