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________________ प्रथमः सर्गः (ये कार्य दिन में करने योग्य हैं और ये रात में इस प्रकार विभाग करके ) नीति से अपने पुरुषार्थ (उद्योग) का विस्तार किया जा रहा है। सं० व्या०-धृतराष्ट्रस्य ज्येष्ठपुत्रः सः दुर्योधनः कामक्रोधादिशत्रुसमूह विजित्य अनीव विनीतः जातः । साधारणजनैरगम्यस्वरूपां मनूपदिष्टां प्रजापालननीतिमनुसतु स: इच्छति । कार्यभारस्य आधिक्यात सर्वेषां कार्याणं युगपत् सम्पादनमसम्भवमिति कृत्वा 'अस्मिन् समये इदं कार्य कर्तव्यमिदं न कर्तव्यम्' इति अहोरात्र यो: समयस्य विभाजनं (विभागं) कृत्वा निरलसः सः सर्वाणि कार्याणि नीतिशास्त्रानुसारेण सम्पादयति || स०-षण्णां वर्गः षड्वर्गः (तत्पु०), अरीणां षड्वर्गः अरिषड्वर्गः (तत्पु.), कृतः अरिषड्वर्गस्य जयः येन सः कृतारिषड्वर्गजयः (बहु) तेन अरिषड्वर्गजयेन । न गम्यम् इति अगन्यम् (नञ् समास ) अगम्यं रूपं यस्याः सा अगम्यरूपा ताम् अगम्यरूपाम् (बहु०)। नक्तं च दिवा च इति नक्तन्दिवम् (द्वन्द्व ) अस्ता तन्द्रिः यस्य सः अस्ततन्द्रिः तेन अस्तनन्द्रिणा ( वहु०)। व्या०-मानवीं-मनोरियं मानवी, ताम् ; मनु + अ + ङीप् । प्रपित्सुनाप्रपत्तुम् इच्छुः प्रपित्सुः तेन; प्र+पद् + सन् + उः। विभज्य-वि+भज+ कत्वा-ल्यप । वितन्यते-वि+तन्+लट कर्मवाच्य ।। टि०-(१) दुर्योधन आदर्श राजा बन गया है। दुर्गुणों का परित्याग करके यह सद्गुणों से सम्पन्न हो गया है। स्मृतिकार मनु के द्वारा उपदिष्ट नीति से वह प्रजा का शासन कर रहा है। आलस्य का परित्याग करके वह रात-दिन उद्योग कर रहा है। नीति और उद्योग का जोड़ा है। उद्योग के बिना नीति विधवा स्त्री के समान है। इस प्रकार वह प्रजा को अपने अनुकूल करने का पूरा-पूरा प्रयत्न कर रहा है जिससे प्रजा आप लोगों को भूल जावे । (२) द्वितीय चरण में पकार की और चतुर्थ चरण में नकार की कई बार आवृत्ति ह'ने से वृत्त्यनुप्रास है । घण्टापथ-कृतेति । षण्णां वर्गः षड्वर्गः। अरीणामन्तःशत्रूणां कामक्रोधादीनां षड्वर्गोऽरिषड्वर्गः । शिवभागवतवत्समासः । तस्य जयः कृतो येन तेक
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
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